मुरझाए पत्ते

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niraj tyagi
मुरझाए पत्ते  हो  तुम,
अब कैसे रुक पाओगे।
कभी  जिन  हवाओ के
आगे तुम ना झुकते  थे
कैसे अब उनके वेग को
तुम    सह    पाओगे ।
अपने   आख़िरी  अंजाम
को अब तुम पहचान लो ।
इससे पहले गिरा दे  तुम्हें
ये  हवाएं   क्यों   ना  अब
उस पेड का दामन छोड़ दो।
हरे  भरे  पत्तो  को  जिसने
अपने   साथ   झुलाया  है।
मुरझाए   जब   पत्ते   तब
कभी   वो   उनके   काम
ना      आया      है ।
हँसते    मुस्कुराते    परिंदों
की    चहचहाट     सबको
लगती      प्यारी      है   ।
उड़   ना   पाए   जब  वही
तब      सबको      लगते
बहुत    ही    भारी    है  ।
वक्त   रहते   ही   अपने
आप  को  तुम  पहचान
लो ,  बना   लो  अपना
मन   कुछ   ऐसा  , जो
लोगो  के  पत्थर  खाने
को   भी   तैयार   हो ।
 #नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश )

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