सांस्कृतिक अवमूल्यन

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हरीश शर्मा

यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक / लेखकों का है, मातृभाषा.कॉम का नहीं।

वर्तमान भारत में अधिकांष भारतीयों को इस बात का अफसोस रहता है कि भारतीयों की वृहद सांस्कृतिक  विरासत का दिन ब दिन अवमूल्यन होता जा रहा है सोशल मीडिया के इस दौर में हम लोग डिजिटल रिश्तों को जी रहे है व वास्तविक रिश्तों में ‘खोखलापन ‘ उभर कर सामने आ रहा है परन्तु यदि हम इस पूरे परिदृष्य पर एक गंभीर दृष्टि डाले तो हम यह समझ पायेगे की इस पूरे ‘रंगमंच’ में हमारे जैसे कई किरदार अपनी भूमिका का निर्वाहन पूरी गंभीरता से नहीं कर रहे है तात्पर्य यह है कि यह अवमूल्यन यकायक नहीं हुआ है समय के साथ शने: शने: हमने अपने सांस्कृतिक आधार को छोडा़ है जिसके जिम्मेदार हम सभी है। आज के दौर में समयाभाव  के चलते व जीजिविषा के अभाव में हम लोग शार्टकट अपनाने लगे है जिसके कारण घर जाकर मिलने के  स्थान पर फोन व फोन के स्थान पर एक कामन व्हाट्स अप, फेसबुक मेंसेज के माध्यम से शुभकामनाओं की रैली चल पढ़ी  है जो एक मोबाइल से दूसरे मोबाइल तक होते हएु बहुतायत तक पहुँचती जा रही है यदि समय रहते   इस बहाव को नहीं रोका गया  तो (जो कि निकट भविष्य में सभंव भी नहीं दिखता)  एक दिन जब हम  पीछे मुडकर देखगे तो पछतावे  के सिवाय कोई विकल्प भी नहीं दिखेगा।

यदि हम इस सांस्कृतिक गिरावट को थामना चाहते है तो हमें स्वयं को सबसे पहले हमारी सांस्कृतिक परंपराओं का सही अनुपालन सुनिश्चित करना होगा जिसके लिए जरूरी है परिवार व पारिवारिक संस्कारों हेतु कुछ समय निकालना , जब हम स्वयं गंभीरता से हमारी सांस्कृतिक विचारधाराओं का सम्मान करेंगे तो ऐसा करते हुए देखने पर शायद विडियो गेम्स मोबाइल, टी.वी व इन्टरनेट के मकडजाल में फँसी हमारी युवा पौध शायद थोडा उस जकडन से बाहर निकलकर  सांस्कृतिक मूल्यों को समझने लगे , हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जिन परम्पराओं का हमारे बुजुगों ने पालन किया तथा हम तक पहुँचाया, उन्हे हम भी उसी जिम्मेदारी  से उसके मूल रूप में हमारी आने वाली पीढी तक पहॅुचाए व उसका मूल्य भी उन्हे समझाये और यह तभी संभव होगा जब हम स्वयं पूरी जिम्मेदारी से उन परम्पराओं का पालन करे तथा उनके क्रियान्वयन हेतु वास्तविक व सार्थक प्रयास करे | क्योंकि बोले हुए शब्दो से ज्यादा असर वास्तविक घटनाओं का होता है, जब हम स्वयं हमारे बड़ो को यथोचित सम्मान व समय देगे तो उसे देखकर हमारे युवा भी भविष्य में ऐसा करने के लिए प्रेरित होगे।

लेखक परिचय: हरीश शर्मा जी एक शिक्षक होने के साथ साथ विगत आधे दशक से लेखन विधा में सक्रिय है, मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले के नागदा जंक्शन (मध्यप्रदेश) निवासरत शर्मा जी सामाजिक चिंतन पर बखूबी लेखन करते हैं|

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