अरे!
ऐसे क्या देख रहे हो,
मुझे।
सिर्फ पट्टी बंधी है
मेरी आँखों पर..
अँधा नहीं हूँl
मैं गांधारी हूँ
धृतराष्ट्र नहीं।
और हाँ,
मैं लचीला हूँ..
स्वयं टूटता नहीं हूँ
ये बात अलग है
कि मुझे तोड़ दिया जाता है,
लेकिन तुम्हारी आँखों पर
पट्टी तो नहीं है न…
फिर अनदेखा क्यों करते हो।
तुमने मुझे चीखते सुना होगा,
दामिनी के मुंह से…
निर्ल्लज होते भी सुना होगा।
कभी देहाती कुबड़ाई हुई
कमर की चाल में चलते
देखा होगा,
मेरी ही सीढ़ियों पर।
कभी खरीद-फरोख्त
की गई मेरी,
कभी बेबस भी हुआ..
कभी रखवालों ने लूटा
तो कभी जानकारों ने मरोड़ा।
मैं कभी सोता नहीं हूँ,
मुझे मूर्छित कर दिया जाता है
सच को डूबते देख
आपका ये
कानून भी रोता है,
लेकिन हाँ….
मैं गूंगा नहीं हूँ
जब बोलता हूँ तो
बराबर तोलता हूँl
इन्साफ का तराजू है
कोई तवायफ के तन का
कपड़ा नहीं…..।
#नरेन्द्रपाल जैन
उदयपुर (राजस्थान)