मुक्तक

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avdhesh
कह  गये  कबिरा  रहीमा  प्यार ही   है बंदगी।
प्यार  करने  से  मिटे   मानस की सारी गंदगी।
प्यार  ही  है भक्ति संगत प्यार  ही   है   साधना।
प्यार  का  ही  नाम  दूजा  है अवध अब जिन्दगी॥
प्यार   करने   की  सज़ा देती  रही लेता   रहा।
दिल दलित दुखता गया फिर भी दुवा देता रहा।
था  पता  नौका  डूबेगी  दर्दे’-दिल  के बोझ  से।
बोझ   वो  देती   रही  औ  नाव  मैं   खेता   रहा।
प्यार करना ज़ुर्म है अब जानकर भी क्या करूँ ?
आह  भरना  हाथ  मेरे  इसलिए   आहें   भरूँ ?
ऐ खु़दा!  इतना  बता  दे  प्यार तूने  क्यों रचा ?
हो  गया  गर   प्यार   तो जिन्दा रहूँ अथवा मरूँ  ?
                                                                          #अवधेश कुमार ‘अवध’

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