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वो सुंदर सी छरहरी देह की गौर वर्णीय लड़की थी। औसत थी पढ़ाई
में। माँ कहती-बेटों को चाहे जितना पढ़ा लीजिए,पर विभूति को नहीं।
अनिमेष पढ़ने में बहुत होशियार
नहीं था,फिर भी इंजीनियरिंग कर
ही ली थी। जिद करके विभूति भी डॉक्टर बन ही गई थी। वह शोध के
लिए लंदन चली गई।
वह अनिमेष की शादी में आई तो
माँ ने कहा-‘तेरी भी हो जाती तो गंगा
नहा लेते।’
‘तो अभी नहा लो,रोका किसने है।
हाँ जी,हाँ जी,करते आपकी तरह
मैं नहीं जी सकती। मुझे मेरा जीवन
जीने दीजिए।’
विभूति की बात सुनकर माँ की आँखों में पानी भर गया। विभूति कैंसर की विशेषज्ञा है। औरतों की बहुत बड़ी डॉक्टर है। माँ उसे देखती और सोचती,कभी उसने भी यही ख्वाब देखा था।
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