दर्द उमड़ा जब जिगर में/

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rakesh dube
कौन कहता है तुम्हारी
बज़्म में अच्छी ग़ज़ल,
प्यार में डूबी हुई सीधी सरल सच्ची ग़ज़ल।

आज तक समझे न यारों हम रदीफ़ो क़ाफ़िया,
दर्द उमड़ा जब जिगर में आँख से छलकी ग़ज़ल।

काम लोगों का था कसना, फब्तियां कसते रहे
हम नए अंदाज में कहते
रहे अपनी ग़ज़ल।

हम न थे वाक़िफ़ कभी, अरक़ान से उन्वान से
कुछ तेरे रुख़सार पर कहना पड़ा,कह दी ग़ज़ल।

उम्र भर लड़ता रहा, अल्फ़ाज़ से,मफ़हूम से
बस यही कोशिश रही लिखता रहूँ दिल की ग़ज़ल।

सच बहुत चुभने लगा,
हर आदमी को दोस्तों
बंद कर ‘गुलशन’ सुनाना
तू यहाँ सच की ग़ज़ल।

                                                                   #राकेश दुबे ‘गुलशन’

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