भगवान परशुराम जयंती

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ग्रन्थों, वेदों, पुराणों के पन्नों को जब-जब पलटा गया है, इतिहास का कोई नया पन्ना आगे लिखा गया है। उसमें मानव जाति के कल्याण के लिए किसी भी रूप में एक महान योद्धा का अवतरण का उल्लेख मिलता है जिसने मानव जाति को अत्याचारों की आंधी से निकाल कर प्रेम, प्यार व भाईचारे का जीवन जीने का संदेश दिया तथा अत्याचार सहन न करने के लिए मानव जाति को चेताया, जगाया और ललकारा है तथा आसूरी शक्ति का विनाश किया है। भगवान ने अत्याचारियों को समाप्त करने के लिए जिन शक्तियों को अवतरित किया वही शक्तियां मानव जाति के लिए देव कहलाई। एक समय ऐसा था जब भारतवर्ष पर क्षत्रियों का राज्य हुआ करता था। धन व सत्ता का मद और तानाशाही व्यवहार के कारण मानव जाति के लिए वह घोर विपदा बन गए थे। तानाशाही व अत्याचारों के कारण भारतवर्ष में त्राहि-त्राहि मच गई थी। लोगों की चीख पुकार भगवान महामानव के रूप में अवतार लिया। अवतरित महामानव ने जप-तप से सिद्धि प्राप्त कर अन्याय व अत्याचार समाप्त किए। इस महान यौद्धा तपस्वी का नाम परशुराम था। इस महान तपस्वी का जन्म छठे अंशावतार के रूप में वैशाख मास शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीय को मां भगवती रेणुका की कोख से हुआ। जन्म से ही तेजस्वी होने के कारण पिता ऋषि जमदग्नि ने वर्षों तक भगवान विष्णु आराधना कर एक महा यज्ञ का आयोजन किया जिसमें इन्द्र देवता जमदग्नि को कामधेनु दान में दी। यह गाय सांसारिक वैभवों से परिपूर्ण थी। महर्षि जमदग्नि एक विद्वान व कठोर तपस्वी थे।
एक बार महा पराक्रमी चन्द्र वंशीय राजा कीर्तवीर्य अर्जुन शिकार खेलने के लिए जंगल में गया। शिकार न मिलने की वजह से घूमता घूमता आश्रय की खोज में जमदग्नि ऋषि के आश्रम में पहुंचे किर्तवीर्य का हर्ष के साथ स्वागत किया। भूख की इच्छा प्रकट करते ही राजा को सुस्वादु भोजन मिला। इस पर राजा ने कहा कि इतने कम, समय में इतना स्वादिष्ट भोजन कैसे तैयार हुआ मैं जानना चाहता हूं। इस पर महर्षि ने कामधेनु के बारे में बता दिया। किर्तवीर्य ने कहा कि ऋषिवर यदि कामधेनु मेरे राजा गृह में होती तो बहुत अच्छा होगा। महर्षि ने कहा क्षत्रिय धर्म कभी दान मांगता नहीं वह देता है। राज हठ के सामने महर्षि का उपदेश काम नहीं आया। राजा के सैनिक बलपूर्वक कामधेनु को ले गए। भीम व कर्ण के गुरू व भगवान शंकर के परमशिष्य परशुराम ने आश्रम में जाकर सारा वृतांत जाना, भगवान परशुराम ने कीर्तवीर्य का पीछा करते हुए युद्ध के लिए ललकारा और कीर्तवीर्य को मारा गया। कामधेनु को लेकर भगवान परशुराम आश्रम में आए तथा श्रद्धा के साथ कामधेनु अपने पिता को सौंपी। इसके बाद भगवान परशुराम ने एक के बाद एक इक्कीस बार इस सम्पूर्ण धरती को अत्याचारी क्षत्रियों से विहीन किया। भगवान परशुराम में शासन करने की इच्छा नहीं थी। माता रेणुका की प्रेरणा से कश्यप ऋषि को सारी पृथ्वी सौंप दी।
त्रेता युग में सीता स्वयंवर का आयोजन पर शिव धनुष खण्डन का समाचार पाकर वहां पहुंचे और ललाट को पढ़कर भगवान परशुराम समझ गए थे कि हम दोनों एक उद्देश्य पूर्ति के लिए अवतरित हुए हैं। दोनों का उद्देश्य पृथ्वी से अत्याचार मिटाना है। यह विचार कर भगवान परशुराम ने युद्ध करने का विचार त्याग दिया था। परन्तु जब तक भगवान श्रीराम अपने तरकश से तीर निकाल कर कमान पर चढ़ा चुके थे इस पर श्रीराम ने कहा हे महामानव तीर कमान पर चढ़ चुका है अब बताइए कहां छोडुं इस पर भगवान परशुराम ने कहा हे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान मैं इस धरती को दान कर चुका हूं इसलिए मैं यहां नहीं रुक सकता तो मेरे मन के वेग से उड़ने क्षमता मेरे पास रहे इसलिए यह तीर उत्तर दिशा की और छोड़ दें जिससे मेरा अंहकार व क्रोध खत्म हो जाएं।
द्वापर में भी अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए। श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र सौंपते हुए उनके युग के कार्य सम्पन्न करने का कर्तव्य समझाया। ऐसे अवतारी महापुरुष की आज एक बार फिर इस धरती पर आवश्यकता आन पड़ी है। महामानव! हे भगवान! हे परशुराम! आओ एक बार फिर सम्भालो अपना फरमा करो अत्याचार का सफाया।
जय भगवान परशुराम

शुभकरण गौड़
हिसार हरियाणा

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।