अपने-आप में विश्वास करना ही ईश्वर में विश्वास करने के समान है

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satish tiwari
  *इस भारतभूमि के अंचल में समय-समय पर ऐसे नरपुंगव पैदा हुए हैं जिनके विचारों ने न केवल भारत अपितु संपूर्ण विश्व को प्रेरणा प्रदान की।12 जनवरी सन् 1863 ई. की पौष संक्रांति पर कलकत्ते के सिमुलिया पल्ली में माँ भुवनेश्वरी की कोख से ऐसे ही एक नवरत्न ने जन्म लिया जिसकी जीवनज्योति से जगतीतल जगमगा उठा।जो अपने लिए नहीं विश्व के लिए जिया और उस प्रतिभाशाली बालक के भाग्यशाली पिता का नाम था विश्वनाथदत्त।जैसा कि पढ़ने तथा सुनने में आता है कि शिशु वाराणसी के वीरेश्वर महादेव की आराधना के प्रसाद रूप में जन्मा था,अतः उसका नाम रखा गया वीरेश्वर।माता जहाँ उसे प्यार से पुकारती बिले वहीं पिता ने उसे नाम दिया नरेन्द्रनाथ।अपने अपूर्व चारित्र्य,प्रखर स्वदेश प्रेम,दीन-दुखियों तथा दलितों के प्रति करुणा से परिपूर्ण हृदय तथा अपनी आध्यात्मिक साधना के फलस्वरूप आगे चलकर उक्त बालक स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुआ।अक्सर लोगों के मुख से ऐसा सुनने में आ जाता है कि आज वैसे (अर्थात् श्रीरामकृष्ण परमहंस जैसे) गुरु कहांँ जो कि नरेन्द्रनाथ को विवेकानंद बना सकें?लेकिन स्वामी विवेकानंद के जीवन पर दृष्टिपात करने के उपरांत लोगों का ऐसा सोचना ठीक प्रतीत नहीं होता।विद्वतजनों के कथनानुसार,जिसने एक वृद्ध पड़ोसी से मुक्तबोध व्याकरण के सभी सूत्र सुनकर कंठस्थ कर लिए हों,माँ भुवनेश्वरी से रामायण व महाभारत का पाठ सुनकर उसके अनेक अंश जिसकी जिह्वा पर आ गये हों,जो बचपन से ही मेधावी,निर्भीक,रहस्यप्रिय,श्रुति एवं स्मृतिधर रहा हो,भला उसे परमहंस रामकृष्णदेव जैसा गुरु कैसे न मिलता?इस दृष्टि से हम कह सकते हैं कि नरेन्द्रनाथ में ही वह सभी गुण विद्यमान थे जिनके चलते वे स्वामी रामकृष्ण जैसे तत्वदर्शी महापुरुष का शिष्यत्व प्राप्त कर सके और अपने अंतर में व्याप्त विवेक तथा आनंद को जाग्रत करते हुए अपने विवेकानंद नाम को सार्थक कर सके।मैंने कहीं पढ़ा था कि एक बार जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका प्रवास पर थे,तब किसी अमेरिकन भाई ने उन्हें चिढ़ाने के हिसाब से कहा,आप अपने धर्म तथा धर्मग्रंथों के प्रति बड़ी लम्बी-लम्बी डींगें हाँका करते हैं,तनिक चलकर तो देखिए हमारे यहाँ के पुस्तकालय में आपके धार्मिक ग्रंथ गीता की क्या स्थिति है?स्वामीजी जब वहाँ पहुँचे,तब उक्त अमेरिकन भाई ने कहा,देखिए आपका पवित्र ग्रंथ अन्य सभी पुस्तकों के नीचे रखा हुआ है,इस पर आपका क्या कहना है?स्वामीजी ने तपाक से उत्तर देते हुए कहा,जिस प्रकार किसी भवन की मज़बूती का आधार उसकी नींव हुआ करती है ठीक उसी प्रकार हमारी गीता यहाँ नींव का काम कर रही है।स्वामीजी की तर्कशीलता एवं वाक्पटुता से प्रभावित होते हुए उक्त अमेरिकन भाई ने गीता को नीचे से निकाल कर ऊपर रखते हुए पूछा,अब आपके क्या विचार हैं?तब स्वामीजी ने तुरंत ज़वाब देते हुए कहा,जिस प्रकार किसी राजा के मस्तक पर मुकुट शोभायमान होता है उसी प्रकार यहाँ हमारी प्यारी गीता मुकुट का काम कर रही है।उक्त घटना यह बताती है कि कि स्वामीजी के मन में अपने धर्म तथा धार्मिक ग्रंथों के प्रति अपूर्व श्रद्धा तथा आदर का भाव था।पं.सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के अनुसार,भारत के उत्थान में जितना हाथ स्वामी विवेकानंद का है,उतना और किसी दूसरे का नहीं।स्वामी विवेकानंद का जीवन हमें सिखलाता है कि अपने पूर्वजों को अपनाने में कभी लज्जा का अनुभव मत करो। अपने-आप पर गर्व करो,किन्तु ध्यान रखो यह गर्व स्वयं के कारण नहीं वरन् अपने पूर्वजों के कारण हो।अपने-आप में विश्वास करो,क्योंकि अपने-आप में विश्वास करना ही ईश्वर में विश्वास करना है।स्वामीजी के अनुसार,तुम पत्थर में ईश्वर होने की कल्पना तो कर सकते हो किन्तु कभी यह समझने की भूल मत करना कि ईश्वर पत्थर है।अपने धर्म के अलावा अन्य धर्मों के प्रति भी उनके मन में श्रद्धा तथा आस्था का भाव था।उनका विचार था कि औरों के पास जो कुछ अच्छा पाओ अवश्य सीखो,किन्तु उसे इस प्रकार लो कि तुम्हारी प्रकृति के अनुकूल ढल जाए,कहीं तुम ही पराये न बन बैठो।कह सकते हैं कि वह किसी भी विचार को जैसे का तैसा ग्रहण करने के पक्षपाती कभी नहीं रहे।

जीवनवृत

*सतीश तिवारी ‘सरस’

पिता -स्व. श्री सत्यनारायण तिवारी 
जन्मतिथि -26 जनवरी
जन्म स्थान -ग्राम-मोहद,तहसील-करेली,जिला-नरसिंहपुर (म.प्र.)

शिक्षा-एम.ए (समाजशास्त्र,हिन्दी साहित्य),बी.एड्.,बी.सी.जे.,पी.जी.डी.सी.ए.

सम्प्रति-हिन्दी अतिथि शिक्षक (वर्ग-1)
अध्यक्ष,साहित्य सेवा समिति,जिला-नरसिंहपुर/जिलाध्यक्ष,राष्ट्रीय हिन्दी सेवा समिति

प्रकाशित कृतियाँ-(1)हाशिये पर ज़िन्दगी (ग़ज़ल संग्रह),(2)ख़त लिखे जो प्यार के (ग़ज़ल संग्रह)(3)जाने कौन..?(ग़ज़ल संग्रह),(4)नाते निभते नेह से (दोहा-कुण्डलिया संग्रह)

प्रकाशन की राह में- 1.प्रेम पिपासा (गीत संग्रह)
2.सपना (लघुकहानी संग्रह),3.क्योंकि मैं नहीं चाहता (कविता संग्रह),4.तुलसी-सरसांजलि (कुण्डलिया संग्रह)
5.कबीर-सरसांजलि (कुण्डलिया संग्रह)

प्रसारण-आकाशवाणी जबलपुर से रचनायें प्रसारित

सम्पादन-‘अक्षर साधक’ (नरसिंहपुर जिले के91 कवियों का संयुक्त काव्य संग्रह),’प्रवाह'(उभरते सात कवियों का काव्य संग्रह),’प्रेरणा’मासिक (लघु पत्रिका),’प्रवाह’-2′ (9 कवियों का काव्य संग्रह),’भाव-सम्पदा'(‘काव्य अंज़ुमन’ व्हाट्सऐप संदेश पटल का आयोजन,काव्य संग्रह),’काव्य सुधा’ (संयुक्त काव्य संग्रह)

सम्मान-विविध संस्थाओं द्वारा सम्मानित

विशेष-1.वर्ष 1999 में दिल्ली में आयोजित 15 वें दलित साहित्यकार सम्मेलन में दिये जाने वाले डॉ.अम्बेडकर फेलोसिफ़ सम्मान हेतु बुलाया गया था किन्तु किसी कारणवश न पहुँच सके।
2.मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित प्रतिभा खोज प्रतियोगिता के अंतर्गत साहित्य की कविता विधा में ब्लाक,जिला व संभाग स्तर पर चयनित होने के उपरांत 24 फरवरी 2016 को उज्जैन में रखी गयी राज्योत्सव प्रतिभा खोज-2016 में प्रशंसा पत्र व चेक प्रदान कर सम्मानित किया गया।

सम्पर्क सूत्र-नरसिंहपुर (म.प्र.)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।