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कभी खो न जाए तुम्हारा,
मुझ पर है जो विश्वास।
करती हूं कोशिश सदा,देश,काल,
परिस्थितियाँ नहीं देती साथ॥
तुम्हारा विश्वास ही तो है,
जो आज भी फ़िक्र करते हो मेरी।
और मेरा,मेरा विश्वास भी तो देखो,
किया न तुम पर अटूट॥
कुछ भी हुआ पर,
उसे न टूटने दिया,हमने।
सभी की नजरों में,हमेशा,
हमारे साथ को सजाया हमने॥
यही तो मेरी असली जागीर है,
जो तुम जैसा हमसफ़र पाया।
किया पूरा जीवन समर्पित,
और तुम पर ही छोड़ दिया सब कुछ॥
विश्वास ही तो है ,
हम दोनों की वह डोर।
जो एक-दूसरे को ,
मजबूती से बांधे रखती है॥
सलामत रहे ये हमारा,
अमोल और अटूट विश्वास।
जो बनाता है सभी की,
नजरों में हम दोनों को खास॥
#अरविंद ताम्रकार ‘सपना’
परिचय : श्रीमति अरविंद ताम्रकार ‘सपना’ की शिक्षा एमए(हिन्दी साहित्य)है।आपकी रुचि लेखन और छोटे बच्चों को पढ़ाने के साथ ही जरुरतमंद की सामर्थ्यानुसार मदद करने में है।आप अपने रचित भजन खुद गाकर व लेखन द्वारा अपने मनोभावों को चित्रित करती हैं। सिवनी(म.प्र.)के समता नगर में आप रहती हैं।
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