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मौत की जबसे यारों ख़बर आ रहीं है
मुझे तो कयामत नज़र आ रहीं है
काश कि, रैलियां काफ़िले जो न होते
आज आँखे हमारी भर आ रही है
मौत की यारों….
घुल गया है जहर बू भी आने लगी
उस शहर से हवा इस शहर आ रही है
मौत की यारों…..
जल रही है चिताएं ये कैसा है मंज़र
कब्रगाहों में लाशें हर पहर आ रहीं है
मौत की यारों…………
आदमी इस क़दर जो बीमार है
सताती है चिंता लहर आ रही है
मौत की यारों…..
किशोर छिपेश्वर”सागर”
बालाघाट
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