‘बचपन के दिन’

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मुद्दतें हो गई,चाँद देखे हुए।
वो बचपन के दिन भी,हवा हो गए।।

नन्हीं-सी तितली,वो छोटी-सी चिड़िया।
अब सारे के सारे,ख़फ़ा हो गए।।

वो कागज़ की नाव,पे तैरा था दिल।
मेरे प्यारे,घरौंदे तबाह हो गए।।

बचपन के सपने तो पूरे हुए।
पर हम ही मगर अब,फ़ना हो गए।

मुद्दतें हो गई,चाँद देखे हुए।
वो बचपन के दिन भी,हवा हो गए।।

         #शशांक दुबे

लेखक परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश) में पदस्थ हैं| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय हैं |

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