महाभारत चालीसा

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महभारत महकाव्य है,वेद व्यास का गान।
एक लाख इश्लोक हैं,कहत हैं कवि मसान।।

वेद व्यास ने ग्रंथ बनाया।
महभारत जब नाम धराया।।१
एक लाख सब श्लोक रचाये।
संत मुनी सबके मन भाये।।२
पर्व अठारह सकल कहानी।
कौरव पांडव कथा बखानी।।३
आदि सभा आरण्य विराटा।
करण उद्योग भीषम द्रोणा।।४
शल्य सौप्तिकआश्रम वासिक।
स्वर्गारोहण महप्रस्थानिक।।५
इस्तरि शांति अश्वामेधिक।
पर्व अठारह अनुशासनइक।।६
ब्रह्मा से मुनि अत्रि आये।
चन्द्र बुध पुरुवा कहलाये।।७
आयु नहुष ययाति राजा।
पुरुभरत कुरु शांतु समाजा।८
शांतनु गंगा भीषम जाये।
सत्यवती से ब्याह रचाये।९
चित्रांगद विचित्र वीरा।
भ्राता गंगासुत मति धीरा।।१०
भीषम काशीराज हराये।
अंबे अंबिक कन्या लाये।।११
व्यास दृष्टि धृतराष्ट्र बुलाये।
अंबालिक ने पांडू जाये।।१२
फिर दासी हॅंस आगे आयी।
विदुर मुनी सा बेटा पाई।।१३
राजा पांडव की दो रानी।
धृतराष्ट्र गंधारी आनी।।१४
कुंती सूरज कर्ण बुलाये।
यदु अर्जुंन फिर भीमा जाये।।१५
कोख मादरी नकु सहदेवा।
आयुर्वेदा ज्योतिष सेवा।।१६
सौ पुत्रन गंधारी जाये।
दुर्योधन उन जेठ कहाये।।१७
खांडव वन की करी सफाई।
इन्द्रप्रस्थ नगरी बनवाई।।१८
धृष्टराष्ट्र मन इर्ष्या आई।
पांडव संगे जाल रचाई।।१९
सभा पर्व में लग दरबारा।
चौंसर का जब भया जमारा।।२०
कपटी शकुनी भेद बताए।
एक-एक कर धर्म हराए।।२१
अंतिम दाव में द्रोपदि हारे।
दुःशासन ने चीर उतारे।।२२
रोवत रानी करुण पुकारी।
लाज बचाई कृष्ण मुरारी।।२३
पांडव पांच भये वनवासी।
बारह बरस अरण्या वासी।।२४
तेरहवे में अज्ञात बिताये।
राज विराटा शरणा पाये।।२५
मुरलीधर ने दी समझानी।
दुर्योधन ने एक न मानी।।२६
आमे सामें अर्जुन देखा।
परिजन गुरु युद्ध के भेखा।२७
रणभूमी से परे पिछाई।
तब मोहन ने गीता गाई।।२८
गांडीव हाथ लड़ते पारथ।
मदन सारथी बन हांके रथ।।२९
सेनापति बन भीषम आये।
लाखो सैनिक मार गिराये।।३०
द्रोण पर्व में भई लड़ाई।
चक्र व्यूह गुरुदेव रचाई।।३१
सात द्वार का किला बनाया।
अभिमन्यू को मार गिराया।।३२
अर्जुन द्रोणा जयद्रथ मारा।
करण मौत से हा हा कारा।।३३
दुर्योधन दुःशासन मारे।
शल्यराज भी स्वर्ग सिधारे।।३४
गंधारी ने किया विलापा।
कुंतीधृष्टा सह वन आपा।।३५
शर शैया पे तात सुनाई।
अनुशासन की बात बताई।।३६
अंतिम रात बड़ी दुखारा।
अश्वत्थामा ने सोवत मारा।।३७
अश्वमेध यज धरम कराया।
विजयविश्व झंडा लहराया।३८
मूसल से जब बनी कृपाणा।
यादव एक एक को मारा।।३९
हरिवंश में सब समझाया।
सार सार महभारत गाया।।४०

पांडव पाॅंच स्वर्ग गये,करते प्रभु का गान।
जीत धरम की होत है,कहत हैं कवि मसान।।

डॉ दशरथ मसानिया
आगर मालवा म प्र

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