भर लो अपने अंक में,
उतर जाओ प्राण में भी
तुम ही मेरी स्वांस हो,
तुम ही जीवन आधार प्रियतम।
मेरे दृग निर्झर से बहते,
कातर स्वर में विनती करते
ईश नहीं क्या रचा है तूने,
इस वर्षा का कोई गेह घन।
शून्य में मैं ताकती थी,
शायद तुमको खोजती थी
पूछती थी आद्र चितवन,
हो कहाँ तुम मेरे संगम।
सबने मुझको बहुत छला है,
कण-कण में मुझको तोड़ा है
तुमने आकर मुझे समेटा,
ऋणी रहेगा मेरा ये मन।
अम्बर में जैसे सूर्य है जलता,
वैसे मेरा हृदय था तपता
तुमने आकर सिंधु उलीचा,
क्यों न करती मैं जीवन अर्पण।।
#वर्षा श्रीवास्तव ‘अनिदया’
परिचय:वर्षा श्रीवास्तव की जन्म तारीख १६ मार्च १९८७ और जन्म स्थान मुरैना(मध्यप्रदेश) है। लेखन में आप `उपनाम-अनीद्या` उपयोग करती हैं। आपकी शिक्षा-बी.एस-सी. तथा एम.बी.ए. है। मुरैना में गोपाल पुरा में आपका निवास हैl विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाओं का प्रकाशन हुआ है। सम्प्रति से आप महिला एवं बाल विकास विभाग में पर्यवेक्षक हैं। सामाजिक क्षेत्र में लेखन से ही आपकी पहचान है।आपकी लेखन विधा-छंदमुक्त काव्य,ग़ज़ल आदि है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में रचना प्रकाशन हुआ है।