
वह गीत है
जिसमें लगी है सभी की प्रीत
आते ही जिसके
खिल जाते हैं कोमल पुष्प
महक उठते हैं उपवन
झूम उठते हैं सभी के मन
मौसम-
बन जाता है सुहावना
नूतन सौन्दर्य छा जाता है चहुं ओर
कई तरह के सतरंगी पुष्प खिलकर
बढ़ाते हैं शोभा
बगीचों की और-
आकर्षित करते हैं
अपनी ओर मधुकरों को-
खिल-खिलाकर हंस पड़ती है
सरसों-
मधुआ के गेहूं के खेत में
बोलती हैं कोयलें
हरिया के आम्रमंजरी से
झूंमते बाग में
ते कहीं निकल पड़ते हैं
मस्तानों के झुण्ड
पीताम्बर डाले गीत गुनगुनाते
मादकता सरसता के मोहक
ऋतुराज के स्वागत
अभिनंदन को।
बसन्त के वंदन को !!
शशांक मिश्र भारती
बड़ागांव (शाहजहांपुर)