पार है जाना

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akansha divedi
धुंध के मुझे पार है जाना।
है प्रकाश बन के लहराना॥
फैला है जो धुंआ, अंधेरा।
उस पर बनना मुझे सबेरा॥
 हैं ये अज्ञान की जो।
ज्ञान की राहें रोके है॥
आएगा जब नया सबेरा।
ज्ञान सूर्य चमकाने को॥
दूर होगा तम का डेरा।
प्रकाश किरण पाने को॥
आधारशिला शिक्षा की।
मैं चली रख आने को॥
मार्ग बाधित कितना भी हो।
मैं अविरल अविराम चली॥
कंटक शूल न कितने आए।
मुझे रोक रख पाने को॥
पर मैं न डरी इन संघर्षों से।
बढ़ी तोड़ बाधाओं को॥
ज्ञान के पथ पर चल कर।
पहुँची अज्ञान दूर हटाने को॥
                                                          #आकांक्षा द्विवेदी
परिचय : आकांक्षा द्विवेदी की जन्मतिथि १६ अक्टूबर १९८६ है। आपकी शिक्षा स्नातकोत्तर और पेशे से शिक्षिका हैं। लेखन क्षेत्र में शीघ्र ही २ पुस्तक आने वाली हैं। कवियित्री आकांक्षा द्विवेदी का निवास बिंदकी जिला फतेहपुर में है।सामाजिक अव्यवस्था पर कविता के माध्यम से प्रहार करके सुधार लाना आपका उद्देश्य है।

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