सन्त सिपाही

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सन्त सिपाही भारत के,
तुमको लख लख करें नमन।
तुम्हारे पावन चरणों में,
हम श्रद्धा सुमन करें अर्पण।

मिश्री सी मधुरता वाणी में,
बड़े सहज, सरल विचार।
भक्ति ,शक्ति का संगम हो,
धर्म ही जीवन का सार।

वीर हुआ ना तुम सा कोई,
ना तुम सा कोई बलिदानी।
इतिहास के पन्नों पर तुमने,
एक रच दी अमर कहानी ।

ज्ञान भक्ति की गंगा दिल में,
सदा ही जिसके बहती है।
त्याग,समर्पण ,देशभक्ति की,
एक नई कहानी कहती है।

फूल मिले या शूल मिले,
या मौसम प्रतिकूल मिले।
कष्टों की ना चिंता कोई,
मंजिल अपनी जरूर मिले।

मात-पिता सब खो दिए,
खोये अपने सुत चार।
फिर भी हार ना मानी थी,
की मुगलों से आँखें चार।

वीर,पराक्रमी,बलशाली,
सिंह ने मारी दहाड़।
अपनी बाजुओं की शक्ति से,
मुगलों को दिया पछाड़।

गुरु तुम जैसा पाकर के,
सारा जग हुआ निहाल।
त्याग,समर्पण की अद्भुत,
कायम की जग में मिसाल।

भारत माँ का सुत प्यारा ये,
दशम गुरु सरदार हुआ।
धर्म की रक्षा की ख़ातिर,
अपना सब कुछ वार दिया।

अत्याचार ,अन्याय,अधर्म,
जब शीश उठाता है।
मानवता की रक्षा को तब,
तुम सा अवतारी आता है।

स्वरचित
सपना (स. अ.)
जनपद-औरैया

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