पूर्वोत्तर भारत में लोकप्रिय होती हिन्दी

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भारत बहुआयामी विविधता का सामासिक संगम है। तकरीबन १७१ भाषाओं और ५४४ बोलियों के साथ १२५ करोड़ आबादी वाला हमारा देश कश्मीर से कन्याकुमारी एवं कच्छ से अरुणांचल तक फैला हुआ है। संविधान सभा ने संविधान बनाते समय भारत के दक्षिणी और उत्तर-पूर्वी परिक्षेत्र को भाषाई आधार पर गैर हिन्दी मानते हुए ‘ग’ श्रेणी में रखा था,किन्तु व्यावहारिक तौर पर आज की स्थिति पूर्णतया भिन्न है।
भारत के पूर्वोत्तर भाग में असम, अरुणांचल,मेघालय,मिजोरम,मणिपुर, त्रिपुरा व नागालैंड हैं, जिनको मिलाकर त्रिपुरा के पत्रकार ज्योति प्रसाद सैकिया ने सात बहनों की संज्ञा दी है। इसमें आठवाँ राज्य सिक्किम और पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्र आते हैं। इन राज्यों की विदेशी सीमाएं तिब्बत,भूटान,चीन, म्यांमार और बांग्लादेश से मिलती हैं,जो नि:संदेह गैर हिन्दी राष्ट्र हैं। पूर्वोत्तर का विस्तार देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का ७.९ प्रतिशत है तथा इसकी आबादी देश की लगभग ३.२१ प्रतिशत है। यहाँ की ५२ प्रतिशत भूमि वनों से आच्छादित है तथा ४०० समुदायों के लोग २२० भाषाएँ बोलते हैं, इसलिए पूर्वोत्तर को भारत की सांस्कृतिक प्रयोगशाला कहना ही उचित होगा।
यह सर्वविदित है कि,सभी भारतीय भाषाओं की जननी संस्कृत है जो देश, काल,परिस्थिति और वातावरण को देखते हुए सैकड़ों भाषा,उपभाषा एवं बोलियों का स्वरुप धारण करती गई। किसी भाषा के प्रसार के लिए आवश्यक है कि,उसकी लिपि सरल हो, व्याकरण स्पष्ट हो,उस क्षेत्र में रोजगार की प्रबल सम्भावनाएँ हों,आवागमन सुचारु हो तथा विविध भाषाओं के शब्दों को ग्रहण करने की क्षमता हो। देवनागरी लिपि से सुसज्जित हिन्दी दुनिया की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह संस्कृत से बनी सबसे सशक्त भाषा है, जिसमें तकरीबन १८ उपभाषाएँ और सैकड़ों बोलियाँ निहित हैं। भारत के हर भू-भाग में हिन्दी की सक्षम उपस्थिति देखी जा सकती है। मध्य भारत इसका केन्द्र है, जहाँ से परित: फैल रही है। देश के किसी भी व्यवसाय व उद्योग में सर्वाधिक मानव शक्ति हिन्दी भाषियों की है,जो दूसरे भाषा–भाषियों को प्रभावित करते हैं तथा उनकी भाषाओं में हिन्दी को तलाशते हैं।
पूर्वोत्तर और मध्य भारत के बीच आवागमन का इतिहास बहुत पुराना है। यहाँ के लोगों के साथ धार्मिक, सांस्कृतिक एवं विवाहेत्तर संबंध भी रहे हैं। रामायण में वर्णित गुरु वशिष्ठ का आश्रम आज भी गोवाहाटी में देखा जा सकता है। महाभारत के महायोद्धा भीम भी यहाँ आए थे, जिन्होंने मणिपुर की हिडिम्बा से विवाह किया था। हिडिम्बा पुत्र घटोत्कच का पराक्रम अद्वितीय है। मणिपुर में ही भगवान विष्णु का अति प्राचीन मंदिर एवं श्रीकृष्ण व जामवंत से जुड़ी स्यमंतक मणि की कथा प्रचलित है। ब्रहमपुत्र के आँचल में सदियों पुराना माँ कामाख्या का मंदिर और वहाँ हर वर्ष लगने वाला अम्बूबाची मेला,भारत ही नहीं,अपितु विदेशों से भी दर्शनार्थियों को खींच लाता है। शिवसागर के शिव मंदिर को भारत में सबसे ऊँचाई पर होने का गौरव प्राप्त है। तेजपुर की राजकुमारी उषा और द्वारिका(गुजरात)के राजकुमार अनिरुद्ध की प्रेम कहानी बेहद रुचिकर है। अरुणांचल का परशुराम मंदिर पौराणिक काल तथा त्रिपुरा का नीरमहल मुगलकालीन स्थापत्य का प्रतीक है। मेघालय में स्थित माँ जयन्तिया मंदिर भी प्राचीन कालीन आवागमन को पुष्ट करता है। अंग्रेजों ने जब चाय बागान का विस्तार करना शुरु किया तो उत्तर प्रदेश,बिहार,झारखंड, मध्यप्रदेश,राजस्थान,पंजाब,हरियाणा व उड़ीसा से मजदूरों को लाकर बसाया गया जो चाय जनजाति के नाम से आज भी जाने जाते हैं। असमिया जाति,सभ्यता व संस्कृति के प्राणतत्व श्रीमंत शंकर देव के पूर्वज उत्तरप्रदेश के कन्नौज से तथा दिल्ली में जन्मे पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के पूर्वज भी उत्तर प्रदेश से आकर बसे थे। असमिया फिल्म के पितामह ज्योति प्रसाद आगरवाला जी के पूर्वज राजस्थान के केड़ से यहाँ आए थे।
यद्यपि हिन्दी न्यून मात्रा में यहाँ पहले से ही विद्यमान थी,किन्तु इसका वास्तविक पदार्पण सन् १९३४ में अखिल भारतीय हरिजन सेवा संघ की स्थापना के सिलसिले में महात्मा गाँधी जी के असम आने के साथ हुआ। एक आह्वान के जवाब में गड़मुड़ सर्वाधिकार श्रीश्री पीताम्बर देव गोस्वामी ने असम में हिन्दी सिखाने वाले व्यक्ति की माँग की। गांधी जी ने सहर्ष स्वीकार करते हुए संतमय तेजोमय तपस्वी बाबा राघवदास को हिन्दी के प्रचार–प्रसार हेतु असम में भेजा। महात्मा श्रीमंत शंकरदेव और उनके समकालीन रचनाकारों ने ब्रजभाषा में रचना करके लोगों को आकृष्ट तो किया ही,श्रीमंत शंकरदेव ने पूर्वोत्तर में सबसे अधिक बोली जाने वाली असमिया भाषा में रामायण और श्रीमद्भागवत गीता का अनुवाद किया। संस्कृत की वैयाकरणिक जटिलता से पृथक होकर हिन्दी में रचित रामचरित मानस,प्रिय प्रवास,कामायनी,बिहारी सतसई,सूरसागर,विनय पत्रिका, चालीसे एवं आरतियाँ हिन्दी को पूर्वोत्तर में जन–जन तक पहुँचाने में अग्रणी रहीं। राजस्थान से आने वाले मारवाड़ी अपने संग हिन्दी लेकर आए और काम करने वाले लोगों के साथ साझा करते रहे।
देवनागरी लिपि को भारत की अधिकांश भाषाओं ने अपनाया और यह सत्य है कि,समान लिपि होने पर कोई भी भाषा आसानी से सीखी जा सकती है। अरुणांचल प्रदेश में मोनपा,मिजी व अकाकी की लिपि देवनागरी है,इसलिए यहाँ हिन्दी पूरी तरह से व्याप्त है। असम प्रान्त की तीन भाषाएँ मिरी, मिसमि तथा बोडो(पहले बोडो की लिपि चीनी थी,जिसे पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी की अनुमति लेकर देवनागरी में लिखा जाने लगा)की लिपि देवनागरी है। नागालैंड में देवनागरी में लिखी जाने वाली अडागी,सेमा,रेग्मा चाखे तथा नेपाली भाषाएँ हैं। सिक्किम में नेपाली,लेपचा,भड़पाली तथा लिम्बू को देवनागरी में लिखा जाता है। संस्कृत के तत्सम रूप से बांग्ला तथा तद्भव रूप से असमिया भाषा का प्रादुर्भाव हुआ। पूर्वोत्तर की अधिकांश भाषाओं की लिपि देवनागरी होने या संस्कृत से पैदा होने के कारण ये हिन्दी के बहुत करीब है।
मणिपुर में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से सन १९२८ से तथा मणिपुर हिन्दी परिषद् द्वारा १९३८ से दिन्दी के प्रचार–प्रसार का कार्य चल रहा है। पेशे से अभियंता रमेश सिंघा ने यह बताया कि, बिश्नुप्रिया समुदायों में रामलीला का आयोजन होता रहता है जिसके सम्वाद अधिकाधिक भोजपुरी में बोले जाते हैं। कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा हिन्दी का विरोध करने के बावजूद भी लाइयुम ललित माधव शर्मा,द्विजमणि देव शर्मा, कला चाँद शास्त्री तथा एन. तेम्बी सिंह जैसे लोगों के प्रयास से हिन्दी फल-फूल रही है। सन् १९७१ ई. में पूर्वोत्तर के आठों राज्यों में हिन्दी के विकास के लिए केन्द्रीय संस्था के रूप में पूर्वोत्तर परिषद्(नॉर्थ इस्टर्न कौंसिल)की स्थापना की गई। इसके तीन केन्द्र गोवाहाटी,शिलॉंग और दीमापुर में खोले गए। सुगम संचालन हेतु गोवाहाटी केन्द्र से असम,अरुणांचल और सिक्किम को जोड़ा गया। शिलॉंग से मेघालय,त्रिपुरा और मिजोरम तथा दीमापुर से नागालैंड व मणिपुर जोड़े गए। मिजोरम में डॉ. इंजीनियरी ने हिन्दी–मिजो शब्दकोश लिखकर अभूतपूर्व कार्य किया है। आर.एल.थनकोया तथा श्री मुआनो का योगदान भी सराहनीय है। नागालैंड से प्रत्येक वर्ष ३० हिन्दी शिक्षक प्रशिक्षण के लिए आगरा जाते हैं तथा वापस आकर हिन्दी राजदूत के रूप में कार्य करते हैं। यहाँ तेजी से विकसित हो रही नागामीज भाषा मूलत: हिन्दी,असमिया,नागा,बांग्ला और नेपाली का मिश्रण है जिसकी कोई लिपि नहीं है। बढ़ई का काम करने वाले काइल मेरेन को हिन्दी बोलने में सहजता होती है। औद्योगिक शहर दीमापुर में हिन्दी के बिना जीवन दूभर है। मेघालय में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की ओर से कक्षा ५ से ८ तक की पुस्तकें तैयार कर ली गई हैं। शिलॉंग (शिवलिंग) में रहकर डॉ.अकेला भाई, डॉ.मनोज कुमार,श्रीमती सुस्मिता दास व डॉ.अनिता पांडा साहित्यिक दल- बल के साथ हिन्दी को नव आयाम दे रहे हैं। त्रिपुरा,अरुणांचल और सिक्किम में हिन्दी की पहुँच घर–घर में ही नहीं है,बल्कि अरुणांचल की विधानसभा तक में हिन्दी में सवाल तक पूछे जा रहे हैं। बी.बरुवा कालेज में हिन्दी के प्राध्यापक अरविंद शर्मा के अनुसार हिन्दी असम की ब्रह्मपुत्र घाटी को बराक घाटी से जोड़ती है। असम के डिमा हसाऊ जिले का मुख्य शहर हॉफलॉंग के जनजातीय लोग हॉफलॉंगी हिन्दी बोलते हैं,जो निश्चित रुप से हिन्दी के लिए शुभ लक्षण है। तिनसुकिया को तो दूसरे बिहार के रूप में भी जाना जाने लगा है। डॉ.रुणु बरुवा,जयश्री शर्मा,निशा गुप्ता,ऋतु गोयल,विमला शर्मा,मदनमोहन सिंह,दीपिका सुतोदिया,रीता सिंह,डॉ. नथमल टिबरेवाला,डॉ.राजेन्द्र परदेशी,डॉ. राजकुमार जैन,रविशंकर सिंह तथा प्रदीप मरोड़िया का प्रयास सराहनीय है। पूर्वांचल प्रहरी,दैनिक पूर्वोदय,प्रात: खबर,दैनिक प्रेरणा भारती और सेंटीनल जैसे ख्यातिलब्ध समाचार-पत्र भी पूर्वोत्तर में हिन्दी को लोकप्रिय बना रहे हैं ।
१९७० के दशक में अन्तर भाषाई और द्विभाषिता पर अनुसंधान करने वाले महादेव एल. आप्टे ने पूर्वानुमान किया था कि, ‘अन्य भारतीय भाषाओं से संरचनात्मक समानता के लिहाज़ से हिन्दी द्विभाषिता की सम्भावनाएँ बेहतर होनी चाहिए……साक्षरता में बढ़ोत्तरी के साथ–साथ प्रमुख भाषाओं और हिन्दी के बीच अन्तर भाषाई संचार बढ़ सकता है।’ अब हिन्दी निश्चित रूप से सम्पर्क भाषा(लिंगुआ फ्रैंका)बन चुकी है। पूर्वोत्तर में आठ साल से रहते हुए मेरा निजी अनुभव है कि, न सिर्फ आठ राज्यों के लोग,बल्कि एक ही राज्य के विविध क्षेत्र के लोग एक–दूसरे से बात करते समय हिन्दी का प्रयोग करते हैं, जबकि किसी की भी मातृभाषा हिन्दी नहीं होती है। तेजपुर से शिक्षिका वाणी बरठाकुर एवं जोरहाट से कवयित्री ममता गिनोड़िया ने हिन्दी के ऐसे हजारों शब्द बताए, जो पूर्वोत्तर के लोग धड़ल्ले से बोलते हैं। २००९ में केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री के.संगमा ने हिन्दी में शपथ ग्रहण कर संबंध को मजबूत किया। सोशल मीडिया द्वारा संचालित मंच यथा नूतन साहित्य कुंज, पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी, नारायणी साहित्य अकादमी,हिन्दी साहित्य अकादमी तथा नव गठित पूर्वाशा हिन्दी अकादमी आदि हजारों लोगों के साथ मिलकर हिन्दी साहित्य को जन-जन तक पहुँचा रहे हैं। बढ़ते उद्योग धंधों,समाचार पत्रों,कवि सम्मेलनों एवं फिल्मों ने वाचिक रुप से हिन्दी को सर्व प्रमुख भाषा बना दिया है। अब वह समय दूर नहीं,जब पूर्वोत्तर में हिन्दी के बढ़ते कदम को देखते हुए संविधान संशोधन द्वारा इसे श्रेणी ‘ग’ (गैर हिन्दी) से बाहर किया जा सकेगा ।

 #अवधेश कुमार ‘अवध’

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One thought on “पूर्वोत्तर भारत में लोकप्रिय होती हिन्दी

  1. माननीय अवधेश जी, आप ने पूरे उत्तर पूर्व भारत में हिंदी भाषा के साथ सदियों से कैसे जुड़े उसपर बहुत ही सार्थक इतिहास प्रेरक शानदार लेख प्रदान किए है । आपके इस रचना को पूर्वोत्तर वासी लोग हमेशा याद रखेंगे ।

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।