राजभाषा विभाग का गौरव

0 0
Read Time5 Minute, 9 Second

ed29559b-6020-41dc-ac88-4f31a1011b25 - Copy

राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना किसी व्यक्ति के जीवन का सर्वाधिक आनन्ददायी और अविस्मरणीय क्षण होता है, जिसे यह पुरस्कार मिलता है उससे भी ज्यादा उसके अपनों के लिए । कोई बड़ा सम्मान-पुरस्कार माता-पिता और गुरुजनों की उपलब्धि तो होता ही है लेकिन अर्धांगिनी को तो लगता है यह पुरस्कार उसे ही मिला है। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं होता । लेकिन यहाँ कुदरत का खेल बड़ा ही विचित्र रहा । यह क्षण आया भी तो तब जबकि कुछ ही समय पूर्व जब मेरी अर्धांगिनी का देहान्त हो गया। जिस समय उसे होना ही चाहिए था, वह नहीं थी। पुरस्कार की घड़ी बड़ी विचित्र थी। दो विपरीत मनोदशाओं का वेगवान प्रवाह मेरे अन्तर्मन को द्रवित कर रहा था, प्रतिपल परिवर्तित भावनाओं का आवेग इतनी तेजी से बदल रहा था कि आंखें भावों के निर्देशों को समझ न पाने के कारण भावशुन्य सी हो रही थीं। ।

इस पुरस्कार का श्रेय यदि आज मैं अपनी स्वर्गीय पत्नी डॉ. श्रीमती कामिनी गुप्ता को दे रहा हूँ तो यह केवल भावनात्मक कारण से नहीं है, इसके पीछे वास्तविकता भी है। भारतीय भाषाओं के प्रसार को ले कर मेरा जुनून जितना वह जानती थी उतना शायद ही कोई जानता हो। उससे सर्वाधिक प्रभावित भी वही थी। रोज घंटों तक भाषाओं के लिए सोशल मीडिया पर दूसरों की और अपनी बात रखना। भाषा-प्रौद्योगिकी संबंधी जानकारियों का आदान-प्रदान, फोन पर या इंटरनेट पर संवाद को जन-जन तक पहुंचाना आदि दिनचर्या का अंग रहा है। वह परेशान हो कर अक्सर कहती थी, ‘इस भाषा सेवा के चक्कर में क्यों अपनी सेहत बिगाड़ रहे हैं, दिन रात पागलों की तरह लगे रहते हैे, कभी कुछ मिला, सिवाय दुनिया से बुराई के ? हिंदी सेवा कीजिए पर थोड़ा समय खुद को भी दिया काजिए।’

एक समय मैं देशभर के समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में कलम के मजदूर की तरह लिखा करता था। इसके पीछे तब के मुंबई जनसत्ता के संपादक राहुलदेव जी का प्रोत्साहन था। लेकिन आगे चल कर भाषायी जुनून ने सब छुड़वा दिया था। भाषा संबंधी कार्य के अलावा कभी कभार ही कोई लेख लिखता था। कुछ समय पूर्व एक दिन पत्नी ने कहा, ‘भाषा पर टिप्पणीबाजी और विचार-विमर्श के साथ-साथ थोड़ा समय मौलिक लेखन को क्यों नहीं देते ?’ मैंने सोचा बात तो सही है और तब मैंने भाषा को ले कर, मुख्यत: ‘भाषा प्रौद्योगिकी’ को ले कर कुछ लेख लिखे। और ‘भाषा प्रौद्योगिकी : सत्तर साल का सफरनामा’ उनमें नवीनतम था। यह लेख तब लिखा गया जब वे जिंदगी से संघर्ष कर रही थीं और मैं जिंदगी की अनेक दुश्वारियों के बीच से गुजर रहा था। और जब तक मुझे इसके प्रकाशन की जानकारी मिली वे दुनिया को छोड़ चुकी थीं। मुझे तो लगता है कि उसने ईश्वर से मेरे साथ होती रही कथित नाइऩ्साफी की शिकायत की होगी और अपनी दुआओं से मेरी सिफारिश कर मुझे इतना बड़ा पुरस्कार दिलवाया है । शायद इसलिए भी कि मैं इस खुशी में उसके वियोग को भूल कर आगे बढ़ सकूँ।

यह केवल संयोग नहीं लगता, 14 मार्च 2018 को वह अनन्त में विलीन हुई और ठीक छह महीने बाद अर्थात 14 सितंबर 2018 को माननीय उपराष्ट्रपति जी के हाथों राजभाषा गौरव, प्रथम स्थान के लिए मुझे पुरस्कार मिला। उसीकी प्रेरणा से लेख लिखा, उसीकी दुआओँ से यह पुरस्कार भी पाया और वह भी महाप्रयाण के ठीक छह महीने बाद। उसीकी प्रेरणा से लेख लिखा और उसीकी दुआओँ से यह पुरस्कार भी पाया। शून्य में समा कर भी वह मेरे हित साधने के लिए प्रयासरत है। यह जो भी गौरव है उसीसे है,उसीका है और उसीको समर्पित है।

#डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

दिल को बच्चा बनने देते है

Tue Sep 25 , 2018
दिल को बच्चा बनने देते है दिल की ख्वाहिशों को एक बार फिर से मचलने देते है आँखों में फिर से एक बार इक ख्वाब पलने देते है दुनिया की इस भीड़ में ज़रा- सा  सुकून पाने के लिए आओ इस दिल को इक बार फिर से बच्चा बनने देते […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।