शूल मेरे गाँव के अब,फूलों से भी प्यारे लगे,
शहरों में रहते हुए,जी-सा भर आया है।
माँ की नहीं गोद यहाँ,पिता का आदर्श नहीं,
कांक्रीट का वन यहाँ,लोगों ने बसाया है।।
सुबह से शाम यहाँ,यादों में गुजरती हैं।
आता न समझ यहाँ,अपना पराया है।।
छूट गए घर द्वार,रिश्तों की खबर नहीं।
नौकरी ने हाय देखो,दिन क्या दिखाया है।।
#सुमित अग्रवाल
परिचय : सुमित अग्रवाल 1984 में सिवनी (चक्की खमरिया) में जन्मे हैं। नोएडा में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत श्री अग्रवाल लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य,कविता,ग़ज़ल के साथ ही ग्रामीण अंचल के गीत भी लिख चुके हैं। इन्हें कविताओं से बचपन में ही प्यार हो गया था। तब से ही इनकी हमसफ़र भी कविताएँ हैं।