मेरे गीतों को गज़लो को कही सुनती तो वो होगी,,
नही भूली है मुझको याद करती तो वो होगी,,
बड़े मगरूर होकर के कभी खत हमने लिखे थे,
ना फाड़े है ना जलाए है, उन्हे पढ़ती तो वो होगी,
मेरे गीतो को गज़लो को कही सुनती तो वो होगी,,
मेरे यारो ने उसको कभी बेहद सताया था,
नाम मेरा ले लेकर उसको कभी बेहद चिढ़ाया था,,
आखं भर आती होगी आज भी उनकी,,
मेरे नाम वालों से कभी मिलती जो वो होगी,,
मेरे गीतो को गज़लो को कही सुनती तो वो होगी,,
उसके हाथों की मेहंदी में कभी मेरा नाम आया था,,
मेरे नाम का अक्षर उसने हाथो पर लिखवाया था,,
उसी अक्षर को होठो से कभी चूमती तो वो होगी,,
मेरे गीतो को गज़लो को कही सुनती तो वो होगी,,
गली के मोड़ तक उसकी हमें साथ जाना था,
पलट कर देखती थी वो तब हमें चैन आना था,
उन्हीं गलीयों में जाकर के कभी मुड़ती तो वो होगी,,
मेरे गीतों को गज़लो को कहीं सुनती तो वो होगी,,
सचिन राणा हीरो
हरिद्वार उत्तराखंड
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