कविता कहती क्या…?

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arpan jain

जिसमें भावनाएं, सौंदर्य, साक्ष्य, उलाहना, तंज, पीर ,पीड़ा, पक्ष, विपक्ष, प्रधानता ,प्रमाणिकता, कथन ,कहानी, अनुराग, कुंठा, विरह, विष, विचार, विषमता, समर्पण, सुक्ष्म, सार आदि तो उपस्थित होता है ,किन्तु इसके परे भी होता है शिल्प, प्रसंग और प्रहार।
जी हाँ, बात कविता की हो रही है तो इस बात का अध्ययन आवश्यक है कि कविता का मूल तत्व कहाँ है ,कौन उस कविता रूपी गाड़ी का चालक है, किस तत्व की मापनी उसमें लगी है, कौन-सा कारक किसे प्रभावित कर रहा है, कौन से प्रतिक का क्या महत्व है, क्या अर्थ है।
अमूमन हजारों की संख्या लिखने वाले और सैकड़े में सिमट चुके पढ़ने वाले भी इस बात से सहमत होंगे कि कविता कुछ कहती तो है।
सन 1949 में आई फ़िल्म बरसात में गीतकार रमेश शास्त्री का लिखा गीत, जिसमें संगीत शंकर जयकिशन ने दिया और जिसे लता मंगेशकर जी ने गया ‘हवा में उड़ता जाए मेरा लाल दुपट्टा’ प्रायः सभी श्रोता और दर्शकों तक तो दुपट्टे का हवा में लहराना दिखा गया, जिसने स्त्री के अल्हड़ होने का संकेत दे दिया, किन्तु यही बात कविता में कही जाए तो यहाँ दुपट्टे का लहराना यानी स्त्री के स्वतंत्र होने का प्रतीक माना जाएगा।
आखिर स्त्री उस दौर में भी कितनी स्वतंत्र थी, कवि ने अपने प्रतीकों के माध्यम से यह संकेत जरूर दिया है।
इसी तरह कई उदाहरण है जो कविता के प्रतीकों की गहन व्याख्या करते है।
वर्तमान दौर में बहुत कम या कहें विरले ही लोग है जो कविता में शब्दों के अतिरिक्त भावनाओं की गहराई को प्रदर्शित करते है।
आजकल तो लेखन का उद्देश्य भी पाठक नहीं बल्कि सम्मान हासिल करना हो गया है। कई तो ऐसे भी है, जिनके पुस्तक के विमोचन के कुछ ही मिनटों या घंटे भर में ही सम्मानित होने के प्रति आसक्ति है।
आखिर उन्हें इतना विश्वास है खुद पर कि उनकी किताब कोई पढ़ेगा ही नहीं इसीलिए दिखावे के लिए ही पैसा देकर व्यापारियों से सम्मान खरीदने के लिए लालायित भी है।
कम से कम पाठकों के हाथों में तो किताबों को पहुंचने देते, फिर खरीद लेते सम्मान।
खैर ये उनका विषय है, क्योंकि गुणवत्ता को लेकर उनके अंदर के लेखक की सच्चाई ही उसे इस तरह का कृत्य करने के लिए प्रेरित करती है।
मूल विषय तो कविता क्या कहती है, इसी पर ठहर रहा है, आखिर क्यों समझने की चेष्ठा नहीं की जा रही है कि प्रतीक गहराई से संदेश देते है, और सूक्ष्म रूप से मन को छू भी जाते है।
कविता की प्रत्येक पंक्ति में एक नया संदेश छुपा होता है, यही लेखक/ कवि की पूर्णता का प्रमाण है जो वो तत्व उकेर सके।
आखिर रचनाकारों में भावों के ताल की गहराई में गोता लगाने का सामर्थ्य भी होना आवश्यक है, अन्यथा ढाक के तीन पात।
क्योंकि समकालीन रचनाकारों में अधिक लिखने की चाह जरूर है, किन्तु अच्छा लिखने की चेष्ठा नगण्य।
रोज कुछ तो लिखेंगे, परंतु रोज अच्छा लिखेंगे ये लक्ष्य नहीं।
ऊपर से झूठी तारीफों के पुल बांधने वाले चाटुकारों की फौज, और पैसा लेकर सम्मानित करने वालों की दुकानें तो है ही लेखन के स्तर को तार-तार करने के लिए।
जो सम्मान बेचते है, उनके लेखन या उनकी किताबों को ही कई मुद्रक दो कौड़ी का कहकर सिरे से खारिज कर चुके है, उसके बाद भी सत्य से दूर वो गुमराह करने के लिए जाने जाते है।
यदि कविता या लेखन को समझना है तो खुद रचनाकार को इनसे बचना होगा, और मौलिक विचारों को पाठकों तक पहुंचाने की चेष्ठा करना होगी।
खुद ही खुद का आलोचक बनना होगा, वर्ना एक दिन आपके लेखन का अस्तित्व भी खो जाएगा और आप भी।

शुभ मङ्गल…..

#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’

परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर  साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।