चंदेलों की बेटी, गोंडवाने की रानी, वीरांगना दुर्गावती भवानी

1 0
Read Time5 Minute, 34 Second

दुर्गाष्टमी के शुभ अवसर पर 5 अक्टूबर 1524 को चंदेल वंश में बांदा, कालांजार, उत्तर प्रदेश में जन्मी वीरांगना दुर्गावती का विवाह 1542 में विवाह गढ़ मंडला राजा संग्राम शाह के सबसे बड़े पुत्र दलपत शाह से हुआ था। विवाह के कुछ साल बाद ही दलपत शाह चल बसे। पुत्र वीरनारायण की अल्प आयु के कारण रानी दुर्गावती को राजगद्दी संभालनी पड़ी। उन्हें एक गोंड़ राज्य की पहली रानी बनने का सौभाग्य मिला। वीरांगना, चंदेलों की बेटी थी, गोंडवाने की रानी थी। चंडी थी रणचंडी थी, वो दुर्गावती भवानी थी।

वीर गाथा, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई, रानी अवंती बाई के शौर्य और रानी पद्मावती के जौहर की भांति ही एक पराक्रमी रानी थी। जिसके साहस और शूरता के सामने मुगल सम्राट अकबर ने भी हार मान में अपनी भलाई समझी। प्रबलता से भरी यह रानी कोई और नहीं गोंड साम्राज्य की वीरांगना रानी दुर्गावती थी। जिन्होंने अपनी बहादुरी से मुगल सेना को चारों खाने चित कर दिया था। इतिहास कहता है कि मुगल सम्राट अकबर मध्यदेश में अपना साम्राज्य लागू करना चाहता थे। अकबर ने रानी को धमकी भरे प्रस्ताव में राज स्वीकार करने की बात कही, ना मानने पर गंभीर परिणाम की चेतावनी भी दी थी। इतर रानी दुर्गावती ने उसकी एक भी बात नहीं मानी और वीरता से युद्ध करना मंजूर कर लिया।

मुगल बादशाह अकबर ने गोंडवाना की महारानी को दुर्बल समझ कर ताकत का रौब दिखाया। प्रभाव 1563 में सरदार आसिफ खां को गोंडवाना पर आक्रमण करने का दुस्साहस जताया। जिसके सामने रानी की सेना छोटी जरूर थी लेकिन बड़ी हिम्मतवाली थी। वीरांगना की युद्ध कौशलता और तैयारी ने अकबर की भारी भरकम सेना को हक्के बक्के कर दिया। उन्होंने अपनी सेना की कुछ टुकड़ियों को जंगल में छिपा दिया। बाकी को साथ लेकर निकल पड़ी कूच पर। दौरान एक पर्वत की तलहटी पर आसिफ खां और रानी दुर्गावती का आमना,-सामना हुआ। मुगल सेना काफी विशाल, अत्यधिक तकनीकी युक्त और आधुनिक थी, कारण रानी के सैनिक वीर होने लगे। वही बिना देर गवाए जंगल में छिपी रानी की सेना ने एकाएक तीर से कमानों की बौछार कर दी। अचूक मारक क्षमता से मुगल सेना के कई सैनिक धराशाही होकर छद्म युद्ध हार गए। ऐसी कायराना हरकत अकबर की सेना ने तीन बार की थी लेकिन उन्हें हर बार हार ही नसीब हुई।

बाद 1564 में आसिफ खां ने छल-बल से सिंगार गढ़ को चारों ओर से घेर लिया। बावजूद रानी मुगल सेनाओं के हाथ नहीं लगी। आगे एक बार और युद्ध शुरू हो गया। रानी बहादुरी से लड़ रही थीं लेकिन रानी के पुत्र वीर नारायण सिंह घायल हो गए। रानी के साथ अब केवल 300 सैनिक ही बचे थे। बजाए रानी स्वयं लहूलुहान होने पर भी अकबर के सरदार आसिफ खां से बेखौफ लड़ी। युद्ध के दौरान एक तीर रानी के कंधे में जा लगा निडरता से लगे तीर को निकाल फेक मुगल सेना का डटकर मुकाबला किया। लड़ते-लड़ते एक तीर ने महारानी की आंख को अपना निशाना बनाया। तभी उनके सैनिकों ने उनसे रंण छोड़ने कहा तो रानी ने मना कर दिया। शूरतत्व वीरांगना ने दुश्मन पर विजय या खुद के लिए मौत मांगी।

अंततः घायल रानी को लगने लगा कि अस्मिता पर खतरा हो सकता है तो उन्होंने एक सैनिक से कहा, अब तलवार घुमाना असंभव है। शरीर पर शत्रु के हाथ न लगे। इसलिए मेरी अंतिम इच्छा है कि मुझे भाले से मार दो। सैनिक अपनी रानी को मारने की हिम्मत नहीं कर सका तो उन्होंने स्वयं ही अपनी कटार अपनी छाती में घुसाकर 24 जून 1964 को वीर गति को प्राप्त हो गई। मध्यप्रदेश, जबलपुर जिले के नर्रई नाला में मौजूद रानी दुर्गावती की समाधि आज भी वीर तत्व का बोध कराती है। पुण्य स्मरण साहसी, त्याग और ममता की प्रतिमूर्ति वीरांगना रानी दुर्गावती को शत-शत नमन…

#हेमेन्द्र क्षीरसागर

लेखक, पत्रकार व विचारक)

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

जिंदगी

Sat Oct 5 , 2019
सुकून उतना ही देना, मालिक जितने से जिंदगी गुजर जाए, औकात बस इतनी देना, कि, औरों का भला हो जाए, रिश्तो में गहराई इतनी हो, कि, प्यार से निभ जाए, आँखों में शर्म इतनी देना, कि, बुजुर्गों का अदब रख पायें, साँसे जिस्म में इतनी हों, कि, बस नेक काम […]

पसंदीदा साहित्य

नया नया

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।