ओज़ोन परत का क्षरण रोकना कितना जरूरी

0 0
Read Time10 Minute, 24 Second

sukshama-300x203

प्रकृति ने हमें जन्म दिया है तो जिंदा रहने के साधन भी भरपूर दिए हैं। अगर हम प्रकृति के साथ तालमेल बैठा कर चलते तो आज हम भी सुखी और स्वस्थ होते और ये वसुंधरा भी खुश होकर हम पर यूं ही वरदान लुटाती रहती, किन्तु मानव की हर एक चीज को वश में करने की जिद और थोड़े समय में ज्यादा पा लेने की ख़्वाहिश ने खुद को तो बर्बाद किया ही है,साथ ही प्रकृति को भी छिन्न-भिन्न करने में कोई कोर-कसर नहीं रखी है। हमने धरती माँ के सीने को छलनी कर दिया है। प्रकृति के श्रंगार पहाड़ों  को खोद डाला है,जंगल नष्ट कर दिए हैं। भौतिकता की अंधी दौड़ में नासमझ मानव न जाने कैसे घृणित खेल खेल रहा है। इसी का परिणाम है हमारी रक्षा के कवच ओज़ोन परत में छेद का होना, जो हमारी ही भूलों का परिणाम है।  १६ दिसम्बर १९८७ को संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में ओजोन छिद्र से उत्पन्न चिंता के निवारण हेतु कनाडा के मांट्रियाल शहर में भारत समेत ३३ देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसे मांट्रियाल प्रोटोकाल’ कहा जाता है। इस सम्मेलन में यह तय किया गया कि,ओजोन परत का विनाश करने वाले पदार्थ क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी.) के उत्पादन एवं उपयोग को सीमित किया जाए।

२३ जनवरी १९९५ को संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में पूरे विश्व में इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए १६ सितंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय ओज़ोन दिवस’ के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। उस समय लक्ष्य रखा गया कि पूरे विश्व में २०१० तक ओज़ोन मित्र वातावरण बनाया जाए। हालांकि,यह लक्ष्य आज तक भी पूरी तरह से प्राप्त नहीं किया जा सका है।

ओजोन एक हल्के नीले रंग की गैस होती है,जो सामान्यत: धरातल से २० किलोमीटर से ५० किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है। यह गैस सूर्य से निकलने वाली अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन के लिए एक अच्छे फिल्टर का काम करती है। ओज़ोन ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है,जो वातावरण में बहुत कम मात्रा में पाई जाती है। जहाँ निचले वातावरण में पृथ्वी के निकट इसकी उपस्थिति प्रदूषण को बढ़ाने वाली और मनुष्य के लिए नुकसानदेह है,वहीं ऊपरी वायुमंडल में इसकी उपस्थिति बहुत आवश्यक है। यह गैस प्राकृतिक रूप से बनती है। यदि सूर्य से आने वाली सभी पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुँच जाती,तो पृथ्वी पर मौजूद सभी प्राणी कैंसर जैसे रोगों से पीड़ित हो सकते हैं।सभी पेड़ पौधे नष्ट हो सकते हैं ओज़ोन परत की वजह से ही पृथ्वी पर रहने वाले प्राणी वनस्पति,तीखी गर्मी व विकिरण से सुरक्षित बचे हुए हैं,इसीलिए  ओजोन परत को सुरक्षा कवच कहा जाता है।

ये पराबैंगनी किरणें(अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन) सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली ऐसी किरणें है,जिसमें अत्यधिक ऊर्जा होती है लेकिन सूर्य के विकिरण के साथ आने के कारण पराबैंगनी किरणों का लगभग ९९ प्रतिशत भाग ओज़ोन परत द्वारा सोख लिया जाता है, किन्तु यह ऊर्जा ओजोन की परत को नष्ट या पतला कर रही है। इन पराबैंगनी किरणों को तीन भागों में बांटा गया है और इसमें से सबसे ज्यादा हानिकारक यूवी-सी २००- २८० होती है। ओजोन परत हमें उन किरणों से बचाती है, जिनसे कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है। अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन की बढ़ती मात्रा से कैंसर,चर्मरोग,मानसिक बीमारियों,मोतियाबिंद के अलावा शरीर में रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। यही नहीं, इसका असर जैविक विविधता पर भी पड़ता है। पेड़-पौधे और फसलें नष्ट हो सकती हैं। इनका असर सूक्ष्म जीवाणुओं पर होता है। इसके अलावा यह समुद्र में छोटे-छोटे पौधों को भी प्रभावित करती है,जिससे मछलियों व अन्य प्राणियों की मात्रा कम हो सकती है।यही नहीं,बढ़ा हुआ पराबैंगनी विकिरण अजीवित पदार्थों को भी नुकसान पहुंचाएगा,यानि पेंट,कपड़ों के रंग उड़ जाएंगे। प्लास्टिक के फर्नीचर और पाइप तेजी से खराब होंगे।

ओज़ोन परत का क्षरण क्यों और कैसे हो रहा हैइसका जवाब है कि, इस परत का क्षरण मुख्यतया क्लोरो-फ़्लोरो कार्बन के उत्सर्जन से होता है जो फ्रिज और एसी में प्रयोग होती है। दूसरा कारण है वायु प्रदूषण एवं परफ्यूम्स का अत्यधिक प्रयोग होना।

वैज्ञानिकों ने अनुमान व्यक्त किया है कि,अगले पांच वर्षों के दौरान ओजोन क्षय अपने सबसे बुरे स्तर पर पहुंच जाएगा और फिर धीरे-धीरे विपरीत दिशा में आना शुरू होगा, जबकि करीब २०५० तक ओजोन परत सामान्य स्तर पर आ जाएगी। यह अनुमान इस आधार पर व्यक्त किया गया है कि,’माँट्रियल प्रोटोकोल’ को पूरी तरह लागू किया जाएगा। ओजोन परत फिलहाल बेहद संवेदनशील अवस्था में है। पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों के प्रयासों से कुछ हद तक ओजोन परत सुरक्षा की सफलता संभव हुई है,क्योंकि विज्ञान और उद्योग ओजोन का क्षय करने वाले रसायनों के विकल्पों को विकसित करने और उनका व्यावसायीकरण करने में सफल रहे हैं।

ओजोन-परत की सुरक्षा एवं नियंत्रण के लिए कई सकारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं,क्योंकि बिना ओजोन परत के हम जिन्दा नहीं रह सकते। ओजोन परत को बचाने की कवायद का ही परिणाम है कि,आज बाजार में ओजोन फ्रैंडली फ्रिज,कूलर,एसी इत्यादि आने लगे हैं। इस परत को बचाने के लिए जरूरी है कि,फोम के गद्दों का इस्तेमाल न किया जाए। प्लास्टिक का इस्तेमाल कम-से-कम हो। रूम फ्रेशनर्स व केमिकल परफ्यूम का उपयोग न किया जाए और ओजोन मित्र रेफ्रीजरेटर,एयर कंडीशन का ही इस्तेमाल किया जाए। इसके अलावा अपने घर की बनावट ओजोन मित्र तरीके से की जाए,जिसमें रोशनी,हवा व ऊर्जा के लिए प्राकृतिक स्त्रोतों का प्रयोग हो।

यह धरती हमें एक विरासत के तौर पर मिली है,जिसे हमें आने वाली पीढ़ी को भी देना है। हमें ऐसे रास्ते अपनाने चाहिए,जिनसे न सिर्फ हमारा फायदा हो बल्कि,उससे हमारी आने वाली पीढ़ी भी इस बेहद खूबसूरत प्रकृति का आनंद ले सके।

                                                              #सुषमा दुबे

परिचय : साहित्यकार ,संपादक और समाजसेवी के तौर पर सुषमा दुबे नाम अपरिचित नहीं है। 1970 में जन्म के बाद आपने बैचलर ऑफ साइंस,बैचलर ऑफ जर्नलिज्म और डिप्लोमा इन एक्यूप्रेशर किया है। आपकी संप्रति आल इण्डिया रेडियो, इंदौर में आकस्मिक उद्घोषक,कई मासिक और त्रैमासिक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन रही है। यदि उपलब्धियां देखें तो,राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 600 से अधिक आलेखों, कहानियों,लघुकथाओं,कविताओं, व्यंग्य रचनाओं एवं सम-सामयिक विषयों पर रचनाओं का प्रकाशन है। राज्य संसाधन केन्द्र(इंदौर) से नवसाक्षरों के लिए बतौर लेखक 15 से ज्यादा पुस्तकों का प्रकाशन, राज्य संसाधन केन्द्र में बतौर संपादक/ सह-संपादक 35 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है। पुनर्लेखन एवं सम्पादन में आपको काफी अनुभव है। इंदौर में बतौर फीचर एडिटर महिला,स्वास्थ्य,सामाजिक विषयों, बाल पत्रिकाओं,सम-सामयिक विषयों,फिल्म साहित्य पर लेखन एवं सम्पादन से जुड़ी हैं। कई लेखन कार्यशालाओं में शिरकत और माध्यमिक विद्यालय में बतौर प्राचार्य 12 वर्षों का अनुभव है। आपको गहमर वेलफेयर सोसायटी (गाजीपुर) द्वारा वूमन ऑफ द इयर सम्मान एवं सोना देवी गौरव सम्मान आदि भी मिला है।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

मौसम-ए-मुहब्बत

Tue Oct 3 , 2017
दृग तुम्हारे नेह का दर्पण अगर तकने लगे, और उर में स्नेह की ज्वाला अगर जलने लगे जब  उमंगों  की  घटाएं  मेघ  बन  छाने लगें, एकांत के वो मौन भी जब रास यूँ आने लगें चाह  जब  होने  लगे  यूँ चँद्रमुख  श्रृंगार की, रिक्त-सी लगने लगेगी जब ये गागर प्यार […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।