
तेरी ख़ुशबू से महक़ रहा हूँ आजकल ।
ये तेरा इश्क़ संदल से कम नहीं ।।
मिल जाये अगर साथ तेरा तो ।।।
ज़माने का मुझको गम नहीं ।।।।
महसूस हो रही है रईसी आजकल ।
ये तेरी चाहत दौलत से कम नहीं ।।
मशहूर हो गया हूं तेरे इश्क़ में ज़ालिम ।।।
ये बदनामी भी शोहरत से कम नहीं ।।।।
ज़ेहन ओ दिल तेरी परस्तिश में आजकल ।
ये दीवानगी तो इबादत से कम नहीं ।।
मेरे हिस्से आयीं हैं यादें मख़मली ।।।
ये तेरी आरज़ू किसी रिवायत से कम नहीं ।।।।
जहां वफाएं नहीं वहां चाहत कहाँ ।
ये मोहब्बत किसी हक़ीक़त से कम नहीं ।।
#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।