शबरी के बेर

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त्रेता युग अनकही कहानी, सुनो ध्यान धर कर।
बात पुरानी नहीं अजानी, कही सुनी घर घर।
शबरी थी इक भील कुमारी, निर्मल सुन्दर तन।
शुद्ध हृदय मतिशील विचारी,रहती पितु घर वन।

बड़ी भई मात पितु सोचे, सुता ब्याह जब तब।
ब्याह बरात रीति अति पोचा, नही सहेगी अब।
मारहिं जीव जन्तु बलि देंही, निर्दोषी का वध।
शबरी जिन प्रति प्रीत सनेही, कैसे भूले सुध।

गई भाग वह कोमल अंगी, डोल छिपे तरु वन।
वन ऋषि तपे जहाँ मातंगी, भजते तपते तन।
ऋषि मातंगी ज्ञानी सागर, शबरी सेवा गुण।
शबरी में ऋषिआयषु पाकर,भक्ति बढ़े सदगुण।

मिले राम तोहिं भक्ति प्रवीना, मातंगी ऋषि घर।
ऋषि वरदान यही कह दीना, शबरी के हितकर।
तब से नित वह राम निहारे, पूजन करे भजन।
प्रतिदिन आश्रम स्वच्छ बुहारे, ऐसी लगी लगन।

कब आ जाएँ राम दुवारे, वह पल पल चिंतित।
फूलमाल सब साज सँवारे,कमी रहे कब किंचित।
राम हेतु प्रतिदिन आहारा, लाए वह ऋतु फल।
लाती फल चुन चखती सारे, शबरी भाव विमल।

एहि विधि जीवन चलते शबरी, बीत रहा जीवन।
कब आए प्रभु राम देहरी, तकते थकती तन।
प्रतिदिन जपती प्रीत सुपावन, आओ नाथ अवध।
बाट जोहती प्रभु की आवन, बीती बहुत अवधि।

जब रावण हर ली वैदेही, व्याकुल बंधु युगल।
रामलखन फिर खोजे तेंही, वन मे फिरे विकल।
तापस वेष खोजते फिरते, माया पति सिय वन।
वन मृग पक्षी आश्रम मिलते, पूछ रहे प्रभु उन।

आए राम लखन दोऊ भाई, शबरी वाले वन।
शबरी सुन्दर कुटी छवाई, सुंदर मन छावन।
शबरी देख चकित वे भारी,पुलकित मनोविकल।
राम सनेह बात विस्तारी, शबरी सुने अमल।

छबरी भार बेर ले आती, भूख लगी प्रभुवर।
चखे मीठ वे रामहिं देती,स्वागत अतिथि सुमिर।
नित्य सनेहभक्ति शबरी वे, उलझे प्रभु चितवन।
खाए बेर राम बहु नीके, चकित भाव लक्ष्मन।

शबरी प्रेम भक्ति आदर्शी, पाई चरण शरन।
राम सदा भक्तन समदर्शी, महि धारी लक्ष्मन।
भाव प्रेम मय शुद्ध अचारे, शबरी शुभ जीवन।
जाति वर्ग कुल दोष निवारे, प्रभु के पद पावन।
बाबूलालशर्मा विज्ञ

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