
कर कर के में थक गया
जीवन भर काम।
सबको व्यवस्थित करके
किया अपना काम।
जब आया थोड़ा सा मौका
मिल ने को आराम।
तभी थमा दिया मुझे
एक प्यारा सा पैगाम।
जाकर तुम अब देखो
पुन: एक नया काम।
वाह री मेरी किस्मत
और वाह रे मेरा नसीब।
कभी नहीं मिल सकता
क्या अब मुझे आराम।
फिरसे तुम शुरू करो
एक नया काम ।
जीवन तुम्हारा निकलेगा
कर कर के ही काम।
नहीं लिखा है भाग्य में
तुम्हे कही भी आराम।
करते रहो संघर्ष
तुम जीवन पर्यन्त।
तेरा जीवन बीतेगा
कर कर के काम।
जिस दिन तू रुकेगा
अंत तेरा हो जायेगा।
फिर याद करेंगे तुझे
वो सभी पुराने लोग।
जहाँ जहाँ तुम ने
कभी किया था काम।
पर अब में क्या करू
जब रूठ गए अपने।
और हो गया शिकार
अपने ही लोगो का ।
अब किसको दे दोष
जब किस्मत गई रुठ।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई)
२०/०९/२०१९
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।