कुछ पता नहीं

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जिंदगी में हमने की बहुत गलतियां।
पर हमको इसका पता ही नहीं।
मांगू माफ़ी किस किस गलती की।
जबकि हमको पता ही नहीं।।

कितनी उलझने हैं मेरे जीवन में।
जीवन को खुद ही पता नहीं।
जिस को मैनें दिल से चाहा ।
जबकि उसको तो पता ही नहीं।।

कब आ जायें गी मौत हमें।
इसका किसी को भी पता नहीं।
सारी जिंदगी भटकता रहा
दौलत कामने को।
मौतको रोक भी न सकी ये दौलत।।

फिर क्यों इंसान भागता रहता है।
जीवन भर इस दौलत के पीछे।
जबकि दे न सकती हमको आयु।
तो क्यों भागे हम सब इसके पीछे।।

मंजिले खोजता रहा पूरी जिंदगी भर।
जबकि आखरी मंजिल का उसे पता नहीं।
आता है संसार मे रोते हुए।
जाता है संसार से सबको रुलाक़े।।
आना जाना जीवन का चक्र हैं।
जिसका इंसान को कुछ पता नहीं।।

#संजय जैन 

परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों  पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से  कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें  सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की  शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।

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