देवभूमि में आफत की बारिश 59लोगो की मौत,एक दर्जन से अधिक लापता

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देवभूमि उत्तराखंड में कुदरत का कहर फिर जमकर बरपा।हाल ही में हुई बारिश से आपदाग्रस्त प्रदेश में अब तक 59 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि55 लोग घायल हुए और 12 से अधिक लोग अभी भी लापता हैं। आपदा ने 323 पशुओ को निगल लिया है।वही 115 भवन जमीदोंज हो चुके है और मुख्यमंत्री के मुताबिक 134 भवनों को क्षति पहुंची हैं। इससे प्रदेश में अब तक कुल 170 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने केंद्र सरकार से इस प्राकृतिक आपदा राहत के लिए 175 करोड़ रुपये तत्काल सहायता के लिए मांगे लेकिन केंद्र से अभी तक किसी मदद का ऐलान नही हुआ है।
इतना ही नही बाढ़ प्रभावित उत्तरकाशी के मोरी ब्लॉक में राहत कार्य में लगा एक हेलिकॉप्टर 21 अगस्त को क्रैश हो गया। इस हादसे में हेलिकॉप्टर में सवार दो पायलटों समेत तीनों लोगों की मौत हो गई। राहत सामग्री बांटकर लौट रहा यह हेलिकॉप्टर बिजली के तारों से बचने के चक्कर में पहाड़ी से जा टकराया था।उत्तरकाशी के मोरी ब्लॉक में बादल फटने से भारी तबाही हुई थी। राहत कार्य के लिए तीन हेलिकॉप्टर लगाए गए थे। इन हेलिकॉप्टर से राहत सामग्री पहुंचाने का काम चल रहा था। हेलिकॉप्टर से पीने का पानी और खाने के पैकेट्स बाढ़ प्रभावित इलकों में भेजे जा रहे थे। इनमें से एक हेलिकॉप्टर क्रैश हो गया। इसमें पायलट कैप्टन रजनीश लाल, को-पायलट शैलेश और स्थानीय नागरिक राजपाल राणा की मौके पर ही मौत हो गई। हादसे के बाद ग्रामीण घटनास्थल की ओर मदद के लिए दौड़ पड़े। तो देखा वहां तीनों शव बुरी तरह जले हुए पड़े थे।
प्रलयंकारी जल प्रलय ने मोरी ब्लॉक के आराकोट क्षेत्र में इस कदर कहर बरपाया है कि जन-धन की हानि के साथ कई सड़कें एवं पैदल रास्ते पूरी तरह ध्वस्त हो गए। टिकोची से बलावट तक कई जगहों पर मोटर मार्ग क्षतिग्रस्त हो गए। जिससे क्षेत्र से लगे आधा दर्जन प्रभावित गांव में आपदा के तीसरे दिन भी आपदा प्रबंधन की टीम राहत नहीं पहुंच पाई।
आपदा प्रबंधन की टीमें कड़ी मशक्कत के बाद प्रभावित गांव तक पहुंच पाई। लेकिन इन प्रभावितों इलाको तक राहत सामग्री नहीं पहुंच पा रही है। आराकोट बंगाण क्षेत्र के एक दर्जन से अधिक गांव में भारी बारिश व अतिवृष्टि होने से जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। आराकोट क्षेत्र के किराणु के मौलाणा, मौताली, मोल्डी, ऐराला, हताड़ी, फटक्यारा, गोकुल,खडक्याल, धुनारा, डामटी, आदि स्थानों पर बर्बादी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। लेकिन इन गांव में आपदा राहत टीम नही पहुंच पाई । यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि इस आपदा में केवल आराकोट, टिकोची, माकुड़ी गांव पर ही ध्यान दिया गया है। जिस पर लोगो मे नाराजगी है। उनकी शिकायत है कि आपदा में सब कुछ तबाह होने से वह भूखे-प्यासे हैं और मरने के कगार पर पहुंच गए है। जिसके लिए प्रशासन से शीघ्र आपदा राहत सामग्री उपलब्ध कराने की बात कही है। सनैल गांव से 15 से 20 लोग अभी भी लापता है। आराकोट से दो किमी की दूरी पर स्थित हिमाचल के गांव सनैल से अभी भी 15 से 30 लोग लापता बताये जा रहे हैं। जिनका कहीं पता नहीं चल पाया है। आराकोट क्षेत्र में आई प्रलयंकारी बाढ़ ने हिमाचल व उत्तरकाशी बोर्डर पर स्थित सनैल गांव को पूरी तरह तबाह कर दिया है। आराकोट बाजार से तीन से चार किमी की दूरी पर बसे इस गांव में मजदूरी करने वाले करीब 33 परिवार निवास करते हैं। लेकिन इस गांव में आई आपदा से लापता चल रहे 20 लोगों का कहीं पता नहीं चल पाया है। सनैल गांव निवासी मनीषा, आशीष ,पुष्पा आदि ने बताया कि उनके परिवार के राम प्रसाद ,संयोग ,नीना , तिलक का अभी तक कहीं पता नहीं चल पाया है। आपदा में सबकुछ तबाह होने के बाद ये लोग बाढ़ राहत शिविर में शरण लिए हुए हैं।
भारी बारिश के बाद पहाड़ धंसने से गंगोत्री नेशनल हाईवे बंद हो गया है. यहां काफी मात्रा में मलबा जमा हो गया है. इस सड़क से गुजरने वाली गाड़ियों को दूसरे रास्ते से निकाला जा रहा है. वहीं, ऋषिकेश में लक्ष्मण झूले के बंद होने के बाद लोगों की आवाजाही राम झूले पर बढ़ गई है जिससे ये पुल भी खतरे में आ गई है. अब प्रशासन ने इस पुल पर बाइक को भी प्रतिबंधित किया है.उत्तरकाशी जिले में आई आपदा से 70 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र प्रभावित हुआ है। जनपद की मोरी तहसील सर्वाधिक प्रभावित है। 52 गांव इसकी जद में आएं है, जिसमें 15 लोगों की मौत हुई है। जबकि छह लापता और आठ घायल हैं। वहीं, 115 भवन आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए हैं।
जबकि 17 पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं। आपदा में दो मोटर मार्ग और दो पैदल पुल बह गए हैं। 14 किलोमीटर क्षेत्र में विद्युत आपूर्ति पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई है। आराकोट क्षेत्र में प्रारंभिक अनुमान के अनुसार 130 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मृत लोगों के आश्रितों को 4-4 लाख रुपये और घायलों व अन्य प्रभावितों को मानकों के अनुसार आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है।लेकिन यह नाकाफ़ी है।
इस आपदा में उक्त इलाके के आधा दर्जन से अधिक विद्यालय भवन भी क्षतिग्रस्त हो गए हैं, जिससे करीब 400 से अधिक छात्रों की शिक्षा प्रभावित हो गई है। शिक्षा विभाग ने हालात सामान्य होने तक क्षेत्र के सभी स्कूलों में अवकाश घोषित कर दिया गया है।
आपदा प्रभावितों की पीड़ा पहाड़ जैसी ही लगातार बढ़ती जा रही है और पीड़ितों के घाव पर मरहम लगाने के बजाए सत्ता से जुड़े नेता मात्र शक्ल दिखाने के लिए बाढ़ प्रभावित इलाकों में पहुंचे है। तभी तो पीड़ितों के उदास चेहरों और आंसू सूखा चुकी आंखों में आपदा की दास्तान साफ देखी जा सकती है।
बारिश और बादलों के खौफ में जी रहे लोगो को कुछ दिन पहले तक अपना रौद्र रूप दिखाने वाली नदी का गुस्सा अब आकर थोड़ा शांत हुआ है। लेकिन, कुदरत के कहर से खंडहर हुए घर, जिंदा दफन हुए लोग, मलबे में दबे वाहन, टूटे पुल, बही सड़कें, नदी-नालों व मलबे में जहां-तहां बिखरे सेब के फल और उदास चेहरों पर आपदा के जख्म साफ नजर आ रहे हैं।
सुबह से लेकर शाम तक राजकीय इंटर कॉलेज आराकोट और वन विश्राम गृह में ठहरे आपदा पीड़ितों की अपनों को तलाशती आंखें भविष्य को लेकर आशंकित हैं। इसी बीच नेपाली मूल की कुछ महिलाओ ने विकासनगर विधायक मुन्ना सिंह चौहान को घेरकर उनके सामने तंत्र की उपेक्षा और आपदा की पीड़ा बयां की और अपना गुस्सा उनपर उतारा।
डीएम डॉ. आशीष चौहान के अनुसार पीड़ितों को राहत सामग्री पहुंचाई जा रही है। चिवां व टिकोची के पास प्रभावित ग्रामीण जंगल में टेंट लगाने में जुटे हैं।
सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हेलीकॉप्टर से प्रभावित इलाके का दौरा किया तो पीड़ित हेलीकॉप्टर से पानी व अन्य राहत सामग्री मिलने की उम्मीद लगा बैठे। दोपहर में सीएम आराकोट पहुंचे, प्रभावितों का ढांढस बंधाया। फिर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, पुरोला विधायक राजकुमार समेत अन्य नेताओं के आने का दौर भी चलता रहा।
उफनती नदी और नाले कुछ शांत हुए तो आपदा के जख्म साफ नजर आने लगे। आपदा ने जो कहर बरपाया, उसका मंजर खौफनाक है। आराकोट से लेकर बलावट मोंडा तक आपदा ने जख्म ही जख्म दिए हैं। सबसे बुरी स्थिति आराकोट, सनेल, टिकोची, चिवां और माकुड़ी की है। यहां तक पहुंचाने वाली सड़क, पैदल रास्ते व पुल लापता हैं। मलबे में जगह-जगह दबे वाहनों को देखकर अंदाजा हो रहा है कि यहां भी सड़क रही होगी।
सेब की मंडी कहे जाने वाले टिकोची बाजार में एक भी दुकान ऐसी नहीं है, जहां एक कप चाय मिल सके। यहां सब-कुछ तबाह हो चुका है। चिवां उत्तरकाशी जिले का अंतिम बस स्टॉप माना जाता है, लेकिन यहां अब न सड़क बची है, न बस स्टॉप। ऐसे में जाएं भी तो कहा ,यही समझ मे नही आ रहा है पीड़ितों को।
सड़क व पैदल रास्तों के बह जाने से जिंदगी जोखिमभरी हो गई है। इससे सिर्फ गांव के लोग ही नहीं, बल्कि रेस्क्यू और राहत पहुंचाने वाले भी जूझ रहे हैं। यहां तक की हेली से जो राहत ड्रॉप की जा रही है, उसे लेने के लिए भी ग्रामीणों को दलदल से सने नाले पार करने पड़ रहे हैं। आइटीबीपी , एनडीआरएफ , एसडीआरएफ व पुलिस के जवानों के साथ रेडक्रॉस के स्वयंसेवको के कंधों पर राहत सामग्री लेकर निकटवर्ती प्रभावित गांवों तक पहुंच रहे हैं।
रेस्क्यू टीम टिकोची, चिवां व माकुड़ी में वैकल्पिक पैदल रास्ते तैयार करने के साथ अस्थायी हेलीपैड भी बना चुकी थी। इसके बाद ही चिवां, माकुड़ी और टिकोची में हेलीकॉप्टर से राहत सामग्री पहुंचाई जा सकी। आपदा में आराकोट क्षेत्र के राइंका टिकोची, प्राथमिक विद्यालय चिंवा, उच्च प्राथमिक विद्यालय चिंवा, हाईस्कूल चिंवा तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय किराणू के भवन पूरी तरह तबाह हो चुके हैं, जबकि प्राथमिक विद्यालय डगोली व प्राथमिक विद्यालय मोल्डी को आंशिक क्षति पहुंची है।
इससे इन स्कूलों में पढ़ने वाले कुल 314 छात्र-छात्राओं की शिक्षा पूरी तरह प्रभावित हो गई है। साथ ही राइंका टिकोची व हाईस्कूल चिंवा के बोर्ड परीक्षा के छात्रों के फार्म आदि दस्तावेज भी बाढ़ की भेंट चढ़ गए। इस भीषण आपदा में सात स्कूलों और उनमें रखी शिक्षण सामग्री को भारी नुकसान पहुंचा है। प्रभावित विद्यार्थियों की शिक्षा को जारी रखने के लिए सकुशल बचे नजदीकी स्कूलों व भवनों में वैकल्पिक व्यवस्था की गई है। इसके तहत राइंका टिकोची के 200 छात्र-छात्राओं की पढ़ाई की व्यवस्था निकटवर्ती बरनाली बेसिक स्कूल में की जा रही है।
प्रभावित विद्यालयों के बोर्ड परीक्षार्थियों से नए फार्म भरवाए जा रहे हैं। शिक्षा विभाग की ओर से प्रभावित स्कूलों के विद्यार्थियों को शिक्षण सामग्री भी उपलब्ध कराई जाएगी। ऐसा दावा विभागीय अधिकारियों द्वारा किया गया है।कुलमिलाकर तबाही का मंजर दिल दहलाने वाला है।जिससे उभरने में ही वर्षों लग जायेंगे।
#डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।