जय मातु केहरिवाहिनी सब पर कृपा कर दीजिए,
हम आपके सब लाल हैं,भवतार पार उतारिए।
संसार की सारी चमक चमके तुम्हारे भाल से,
संहार दुष्टों का किया श्रंगार मुन्डों के माल से।
प्रतिमा तुम्हारी दिख रही नयना नयन अभिराम है,
चक्षु नेत्र शोभित आपका काजल जगत की शाम है।
तुम शक्ति की दात्री-विधात्री हम शरण में आपकी,
पूजा कराऊँ जागरण आरती उतारुं आपकी।
सब शोक मेरे दोष मेरे रोग बाधा दूर हो,
ममतामयी जग मातु जीवन प्रेम से भरपूर हो।
सुर देव नर गन्धर्व ऋषियों पर लुटाती प्यार हो,
हम सब सहारे आपके,तुम सबकी पालनहार हो।
नव दिन तुम्हारे रूप नौ प्रतिदिन तुम्हारी साधना,
फलीभूत होती दिख रही हर व्यक्ति की आराधना।
जो भक्ति विह्वल प्रेम से विश्वास से पूजा करे,
नीरज कहे दारुण अविद्या शोक माँ दुर्गा हरे।
माता अपने लाल का सदा करे कल्याण,
व्रत पूजा न कछु पता, जानूं नहीं विधान।
जैसे माँ की गोद में पलता शिशु अबोध,
मैं मूरख मतिमन्द को कर दो मातु सुबोध।।
#नीरज त्रिपाठी गैर
परिचय : उ.प्र. के गोण्डा निवासी नीरज त्रिपाठी ‘गैर’ का काव्य जीवन छोटा है,पर इनके गुरु दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’ के मार्गदर्शन में अच्छी लेखनी जारी है। यह सौ से अधिक मुक्तक श्रृंखला, गीत,ग़ज़ल,कविता,मुक्त कविता और कहानियों को रच चुके हैं। कुछ रचनाएं पत्रिकाओं में छपी भी हैं। खास बात यह है कि,वायुसेना में रहकर मातृभूमि की सेवा कर रहे हैं।