भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निजी जीवन की बख्खियां उधेड़ते हुए कई बार उनसे अलग राजनीतिक विचारधारा वाले लोग इतना उग्र और ऑथेंटिकेट होने की कोशिश कर जाते हैं मानो इन्हीं के सामने उन्होंने अपना रिपोर्ट कार्ड रखा था। वैचारिक मतभेद का मतलब कतई नहीं की किसी व्यक्ति को जो आपके राष्ट्र का पहला नायक रहा है या फिर जिनकी नीतियों और मंत्रिमंडल की सलाह से इस देश ने तरक्की की राह पकड़ी है उसी को कटघरे में खड़ा कर दें।
नेहरू के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल का लेखा जोखा तो पेश नहीं करूंगा मगर उस दौर में कितने और कैसे काम हुए ये पब्लिक डोमेन का हिस्सा है। आज़ादी में उनका योगदान भी उन्हें पढ़ चुके लोग जानते हैं। अब रही बात निजी जीवन की तो उनके रिश्ते, संबंध किस्से कहां कैसे थे ये वही जाने चुकीं वो सार्वजनिक जीवन में थे तो इनपर टिप्पणी और सवाल उठाना हमारा हक है मगर किसी ऐसे शख्स पर उंगली उठाने से पहले अपने गिरेबान में झांक ले तो बेहतर होगा।
जहां तक राजनीतिक महत्वकांक्षाओं की बात है तो ये हर सियासी शख्स के जीवन का हिस्सा होती है। बस आपको लड़ कर उन्हें पाना होता है उस दौर में नेहरू ने उसके बाद इंदिरा ने भी वही किया। उदाहरण उसके बाद के भी है चाहे अटल रहे हो या आडवाणी ता फिर मोदी। कहने का मतलब है किसी को मिल जाता है तो किसी की चाहत अधूरी रह जाती है।
आखिरी और मुद्दे की बात यही है कि ना के कांग्रेसी हूं और ना ही नेहरू भक्त बस पूर्व पीएम नेहरू पर अनर्गल टिप्पणियों से मन व्यथित इसलिए हो जाता है कि जिन हमारे देश की जिन शख्सियतों का विश्व ने सम्मान किया और जिन्होंने नये भारत का मान दुनिया में बढ़ाया उन्हें तुच्छ राजनीतिक तराजू में तोलकर हम अपने ही इतिहास, अपने पूर्वजों को शर्मिंदा कर रहे हैं। नेहरू भगवान नहीं थे जिनसे हम आदर्श होने की उम्मीद लगाए वो भी इसी मिट्टी के इंसान थे।
और हां नए भारत से मतलब आज़ादी के बाद का भारत जो कुछ तो मजबूरियों और कुछ राजनीतिक लालसाओं के कारण बंटा हुआ था, पंगु था या सकारात्मक दृष्टि से देखते हुए कहे तो बच्चा था। जिसे नेहरू, पटेल, अंबेडकर, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसी कई महान हस्तियों ने अपने पैरों पर खड़ा कर चलना सिखाया, पढ़ाया और इस लायक बनाया कि हम सिर ऊंचा कर खुद को भारतीय कह सकें। अनेकों संस्थान, योजनाएं, नीति और विजनरी फैसलों से आगे बढ़ाया ताकि आज 7 लाख गावों में बचे सिर्फ 18 हजार गावों में बिजली देकर सरकारें अपनी वाहवाही करवा सके। राजनीतिक विरोधी ये जान लें की उनको एक नवजात मिला था जो आज दौड़ रहा है और उसी रफ्तार पर सवार मोदी सरकार तेजी लाने के लिए काम कर रही है। फर्क हमारी सोच का जिसपर सियासत ने इस कदर पर्दा डाल दिया कि हम केवल हमारी साइड को ही बेहतर मानते है दूसरा पहलू जाने समझे बिना ही।
विकास के काम में बेहतरी दिनोदिन आती रहेगी इसका मतलब ये नहीं जो आधार है वो ग़लत है अगर ऐसा होता तो भारत आज विश्व की 6वीं अर्थव्यवस्था(ये 5 साल में नहीं हुआ है) नहीं होता। हम इन राष्ट्रनिर्माताओं के योगदान को तर्कों की कसौटी पर कसे तो ही बेहतर है वरना सबसे बड़े लोकतंत्र होने के दावे पर ही सवाल उठना लाजिमी है।
अंततः सार यही है कि नेहरू से पहले भी हिंदुस्तान था और मोदी के बाद भी रहेगा।
पुण्यतिथि पर नेहरू जी को सादर नमन
परिचय : सुनील रमेशचंद्र पटेल इंदौर(मध्यप्रदेश ) में बंगाली कॉलोनी में रहते हैंl आपको काव्य विधा से बहुत लगाव हैl उम्र 23 वर्ष है और वर्तमान में पत्रकारिता पढ़ रहे हैंl