चुनौती

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devendr soni
आज बारहवीं बोर्ड का परिणाम घोषित होने वाला था । घड़ी का कांटा जैसे जैसे आगे बढ़ रहा था , रमेश का दिल भी उसी तेजी से धड़क रहा था । अनजानी आशंका से उसकी हिम्मत टूटती जा रही थी , पर परिणाम जो भी आए , उसका सामना तो करना था लेकिन इसके लिए वह खुद को मानसिक रूप से तैयार नही कर पा रहा था । वह जानता था इस बार भी परीक्षा परिणाम उसके पक्ष में नही आएगा और वह अनुत्तीर्ण हो जाएगा । पिताजी ने सुबह ही एलान कर दिया था कि यदि इस बार भी परीक्षा में अनुत्तीर्ण हुए तो फिर घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नही । हालाकि रमेश यह भी जानता था कि पिताजी का गुस्सा क्षणिक ही होता है । वे कर्कश बोलते जरूर हैं पर उसे प्यार भी बहुत करते हैं  लेकिन यही प्यार आज रमेश को भयभीत किए हुए था । उसे लग रहा था – आखिर क्यों वह बचपन से ही पढ़ाई में इतना कमजोर रहा है । सारी कोशिशों के वाबजूद भी उसे असफलता ही क्यों मिलती रही है ? क्यों नही वह अपने पिताजी के सपनों को पूरा कर पा रहा है ?
निराशा की स्थिति में रमेश के पास इन प्रश्नों का कोई उत्तर नही था । वह यह सब सोच ही रहा था कि तभी उसके दोस्त ने आकर उसे परीक्षा परिणाम की जानकारी दी । वही हुआ जिसका रमेश को डर था। दूसरी बार भी वह अनुत्तीर्ण हो गया । मित्र तो उसे सांत्वना देकर चला गया किन्तु रमेश अवसाद से घिर गया। उसके युवा मन से रह रह कर आवाज आ रही थी- असफलता ही उसका भाग्य है । यह जीवन बेकार है । वह अपने माता पिता पर सिर्फ और सिर्फ बोझ बनकर ही रह गया है। किस मुसीबत से , मेहनत मजदूरी करके उसके पिता उसे पढ़ाना चाहते हैं और वह है कि हर बार अनुत्तीर्ण हो जाता है ।
इन्ही उमड़ते – घुमड़ते विचारों के चलते उसने एक अप्रिय निर्णय ले लिया । अपना जीवन समाप्त करने का। उसे लग रहा था कि अब वह कभी सफल नही हो पाएगा। वह उठा और धीरे से अपने कमरे से बाहर आ गया।
सड़क पार करते ही रमेश ने अपने पिताजी को आते हुए देखा । वह बुरी तरह सहम गया । अपनी नजरों को नीचे कर वह दूसरी ओर मुड़ने जा ही रहा था कि – तभी उसने पिताजी को आवाज लगाते सुना । वह उसे ही पुकार रहे थे । अब रमेश के पास रुकने के सिवाय कोई चारा नही था । पास आकर पिताजी ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और बोले – मैं जानता हूँ बेटा ! तुम इस बार फिर फेल हो गए हो लेकिन इसमें इतना मुंह लटकाने की क्या बात है ? स्कूली परीक्षा में ही तो फेल हो रहे हो , जिंदगी की परीक्षा तो अभी बाकी है । असली इम्तहान और असली चुनौती तो खुशहाल जीवन जीना ही होता है। अभी जिंदगी में बहुत इम्तिहान होंगे । बहुत चुनौतियाँ आएँगी। उनका सामना करने के लिए मजबूत बनना होगा । निराशा किसी समस्या का हल नही है। निराशा पर विजय पा लेना ही असली इम्तिहान होता है।
पिता बोले – मेरी इस बात को अपने जीवन का आधार बनाओ और इसे चुनौती मानकर किसी अन्य क्षेत्र में सफलता पाओ। जरूरी नही है कि यदि हम को पढ़ाई में असफलता मिल रही है तो अन्य क्षेत्रों में भी यही हो। सफलता का मूल मंत्र – किसी भी काम को एकाग्रता से करने में निहित होता है , बेटा ! अभी तुम्हारा ध्यान पढ़ाई के साथ घर के कमजोर हालातों पर भी रहता है । इसलिए तुम सफल नही हो पाते हो। खुद को बदनसीब कहना या भाग्य को कोसना ठीक नही। भाग्य केवल साहसी व्यक्ति का ही साथ देता है और जो हर चुनौती  का सामना कर सकता है , साहसी भी वही होता है। तम्हें साहसी बनना होगा , हर चुनौती को स्वीकारना होगा , देखो फिर कदम कदम पर सफलता तुम्हारा स्वागत करेगी । वादा करो , करके देखोगे।
चलो अब घर चलते हैं । तुम्हारी बीमार माँ राह देख रही होगी।
घर आकर रमेश अपने कमरे में आ गया । पिताजी की बातों ने उसमे ऊर्जा का संचार किया । अब उसने सोच लिया – कल से ही वह पिताजी के साथ काम करेगा और अपनी पढ़ाई भी जारी रखेगा । जीवन की सच्चाई को उसने चुनौती मानकर अपने मन में उपज रहे अवसाद को हमेशा हमेशा के लिए विदा कर दिया। पिताजी की बातों में रमेश को सच्चाई नजर आ रही थी। अब वह हर चुनौती  का सामना करने के लिए तैयार था।
   #देवेंन्द्र सोनी

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।