मोदी जी,आपने तो मैकाले को भी पीछे छोड़ दिया

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आदरणीय मोदी जी!,आप जिस तरह झूम-झूमकर मंत्रमुग्ध कर देने वाला भाषण हिन्दी में देते हैं,क्या उसी तरह का प्रभावशाली भाषण अंग्रेजी में भी दे सकते हैं ? आप जिस तरह अपने को हिन्दी में अभिव्यक्त कर लेते हैं,क्या उसी तरह अंग्रेजी में भी कर सकते हैं ? नहीं न ? विश्वास कीजिए,हम सबके साथ ऐसा ही होता है| `इंडियन एक्सप्रेस` के ३० अक्टूबर २०१७ के अंक में छपी खबर के अनुसार आपकी सरकार ने दिल्ली कारपोरेशन के अंतर्गत आने वाले सभी १७०० से अधिक स्कूलों को आगामी मार्च से अंग्रेजी माध्यम में बदल देने का फैसला लिया है| इसी तरह का फैसला गत जून के अंतिम हफ्ते में उत्तराखंड की सरकार ने अपने यहां के १८००० से भी अधिक स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम बनाने की घोषणा करके लिया था| महोदय,आपकी सरकार का यह निर्णय हमारे संविधान की मूल भावना के खिलाफ तो है ही,यह निर्णय इस देश के अस्सी प्रतिशत प्रतिभाशाली बच्चों के मौलिक अधिकारों का भी हनन है और उन्हें देश की मुख्यधारा में शामिल होने से रोकना है| मान्यवर,आप जब प्रधानमंत्री बने थे,तो हम बहुत खुश थे| हमें लगा कि,हमारे बीच का एक व्यक्ति जिसने गरीबी देखी है,संघर्ष झेला है वह हमारा नेतृत्व करेगा और हमारे हित में जरूर फैसले लेगा किन्तु,आपकी सरकार ने तो मैकाले को भी पीछे छोड़ दिया| मैकाले भी इस देश में बुनियादी शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से देने की हिम्मत नहीं जुटा सका था| आप भली-भांति जानते हैं कि,इस देश के मुट्ठीभर लोगों ने सत्ता पर कब्जा जमाए रखने के लिए अंग्रेजी को एक हथियार की तरह अपनाया हुआ है| जब तक हमारी शिक्षा हमारी अपनी भाषाओं के माध्यम से नहीं होंगी,तब तक गांवों की दबी हुई प्रतिभाओं को मुख्यधारा में आने का अवसर नहीं मिलेगा| आजादी के बाद इस विषय को लेकर राधाकृष्णन आयोग,मुदालियर आयोग,कोठारी आयोग आदि अनेक आयोग बने और उनके सुझाव भी आए|सबने एक स्वर से यही संस्तुति की कि,बच्चों की बुनियादी शिक्षा सिर्फ मातृभाषाओं में ही दी जानी चाहिए| दुनिया के सभी विकसित देशों में वहां की मातृभाषाओं में ही शिक्षा दी जाती है| मनोवैज्ञानिक भी यही कहते हैं कि,अपनी मातृभाषा में बच्चे खेल- खेल में ही सीखते हैं और बड़ी तेजी से सीखते हैं| उनकी कल्पनाशीलता का खुलकर विकास मातृभाषाओं में ही हो सकता है| गाँधी जी चाहते थे कि,बुनियादी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सब कुछ मातृभाषा के माध्यम से हो| `यंग इंडिया` में उन्होंने लिखा है,-`अगर मेरे हाथों में तानाशाही सत्ता हो तो मैं आज से ही हमारे लड़के और लड़कियों की विदेशी माध्यम के जरिए शिक्षा बंद कर दूं और सारे शिक्षकों और प्रोफेसरों से यह माध्यम तुरन्त बदलवा दूं या उन्हें बरखास्त कर दूं| मैं पाठ्यपुस्तकों की तैयारी का इंतजार नहीं करूंगा| वे तो माध्यम के परिवर्तन के पीछे-पीछे चली आवेंगी|`‘हिन्द स्वराज’ में उन्होंने लिखा कि,-`अंग्रेजी शिक्षण से दंभ-द्वेष,अत्याचार आदि बढ़े हैं| अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त लोगों ने जनता को ठगने और परेशान करने में कोई कसर नहीं रखी| भारत को गुलाम बनाने वाले तो हम अंग्रेजी जानने वाले लोग ही हैं|`आप स्वयं जिस ‘विश्वभारती’(शान्ति निकेतन) के कुलाधिपति हैं,उसके संस्थापक गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शिक्षा के माध्यम विषय पर कहा हैं,-`हमारा मन तेरह-चौदह वर्ष की आयु से ही ज्ञान का प्रकाश तथा भाव का रस प्राप्त करने के लिए खुलने लगता है| उसी समय यदि उसके ऊपर किसी पराई भाषा के व्याकरण तथा शब्दकोश रटने के रूप में पत्थरों की वर्षा आरंभ कर दी जाए,तो बतलाइए कि वह सुदृढ़ और शक्तिशाली किस प्रकार हो सकता है ?` उल्लेखनीय है कि,गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा इंग्लैंड में अंग्रेजी माध्यम से हुई थी और उनके जीवन के प्रारंभिक आठ वर्ष यूरोप में ही व्यतीत हुए थे| आपको पता ही होगा ‘विश्वभारती’ की माध्यम-भाषा उन्होंने बांग्ला को ही चुना| महोदय,आपने पिछले दिनों एक लाख करोड़ की लागत वाली जापान की तकनीक और कर्ज के बल पर जिस बुलेट ट्रेन की नींव रखी है,उस जापान की कुल आबादी सिर्फ १२ करोड़ है| वह छोटे-छोटे द्वीपों का समूह है| वहां का तीन चौथाई से अधिक भाग पहाड़ है और सिर्फ १३ प्रतिशत हिस्से में ही खेती हो सकती है| फिर भी वहां सिर्फ भौतिकी में १३ नोबेल पुरस्कार पाने वाले वैज्ञानिक हैं| ऐसा इसलिए है कि,वहां ९९ प्रतिशत जनता अपनी भाषा ‘जापानी’ में ही शिक्षा ग्रहण करती है| इसी तरह कुछ दिन पहले आपने जिस इजराइल की यात्रा की थी और उसके विकास पर लट्टू थे,उस इजराइल की कुल आबादी मात्र ८३ लाख है और वहां ११ नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक हैं,क्योंकि वहां भी उनकी अपनी भाषा ‘हिब्रू’ में शिक्षा दी जाती है| चीन के राष्ट्रपति का स्वागत भी आप कर चुके हैं| चीन उसी तरह का बहुभाषी विशाल देश है जिस तरह का भारत,किन्तु उसने भी अपनी एक भाषा चीनी(मंदारिन) को प्रतिष्ठित किया और उसे वहां पढ़ाई का माध्यम बनाया| चीनी बहुत कठिन भाषा है| चीनी लिपि दुनिया की संभवत: सबसे कठिन लिपियों में से एक है| वह चित्र-लिपि से विकसित हुई है| आज चीन जिस ऊंचाई पर पहुंचा है, उसका सबसे प्रमुख कारण यही है कि उसने अपने देश में शिक्षा का माध्यम अपनी चीनी भाषा को बनाया| इसी तरह अमेरिका,इंग्लैंड,जर्मनी,फ़्रांस,रूस आदि दुनिया के सभी विकसित देशों में वहां की अपनी भाषाओं क्रमश:अंग्रेजी,जर्मन,फ्रेंच,रूसी आदि में ही शिक्षा दी जाती है,इसीलिए वहां मौलिक चिन्तन संभव हो पाता है| मौलिक चिन्तन सिर्फ अपनी भाषा में ही हो सकता है,व्यक्ति चाहे जितनी भी भाषाएं सीख ले,किन्तु सोचता अपनी भाषा में ही है| हमारे बच्चे दूसरे की भाषा में पढ़ते हैं,फिर उसे अपनी भाषा में अनुवाद करके सोचते हैं और लिखने के लिए फिर उन्हें दूसरे की भाषा में अनुवाद करना पड़ता है| इस तरह हमारे बच्चों के जीवन का एक बड़ा हिस्सा दूसरे की भाषा सीखने में चला जाता है| अंग्रेजी माध्यम अपनाने के बाद से हम सिर्फ नकलची पैदा कर रहे हैं| अंग्रेजी माध्यम वाली शिक्षा सिर्फ नकलची ही पैदा कर सकती है| आप तो अपनी विरासत समझते हैं,याद कीजिए- जब अंग्रेज नहीं आए थे और हम अपनी भाषा में शिक्षा ग्रहण करते थे,तब हमने दुनिया को बुद्ध और महावीर दिए,वेद और उपनिषद दिए,दुनिया का सबसे पहला गणतंत्र दिया,चरक जैसे शरीर विज्ञानी और सुश्रुत जैसे शल्य-चिकित्सक दिए,पाणिनि जैसा व्याकरण और आर्य भट्ट जैसे खगोल विज्ञानी दिए| पतंजलि जैसा योगाचार्य और कौटिल्य जैसा अर्थशास्त्री दिया| हमारे देश में तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय थे,जहां दुनियाभर के विद्यार्थी अध्ययन करने आते थे| इस देश को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था,जिसके आकर्षण में ही दुनियाभर के लुटेरे यहां आते रहे| प्रख्यात आलोचक रामविलास शर्मा ने कहा है कि,-दुनिया के किसी भी देश की संस्कृति से मुकाबला करने के लिए अपने यहां के सिर्फ तीन नाम ले लेना ही काफी है- तानसेन,तुलसीदास और ताजमहल|
मोदी जी,इस समय हमारे देश में ८ करोड़ ऐसे बच्चे हैं जो स्कूल नहीं जाते| सबसे पहले उन्हें स्कूल भेजने की व्यवस्था कीजिए,प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती कीजिए,सरकारी विद्यालयों को जरूरी संसाधन उपलब्ध कराइए| शिक्षा का क्षेत्र आज भारी मुनाफे का क्षेत्र हो गया है| सबसे ज्यादा निवेश यहीं हो रहे हैं| निजी स्कूलों में शिक्षक बंधुआ मजदूर की तरह काम करता है| वह मालिकों की चापलूसी में लगा रहता है,शिक्षा क्या देगा ? इस पर अंकुश लगाइए और शिक्षा को पूरी तरह न हो सके तो अधिक-से-अधिक सरकारी नियंत्रण में ले आइए| यहीं भावी नागरिक तैय़ार होते हैं,इससे पल्ला झाड़ना देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ है|मोदी जी,अंग्रेजी ही ज्ञान की भाषा है,यह बहुत बड़ा झूठ है| यह गलत अफवाह फैलाई जाती है कि,उच्च शिक्षा(ज्ञान-विज्ञान-तकनीक) की पढ़ाई हिंदी में नहीं हो सकती| जब चीन की मंदारिन(चीनी)जैसी कठिन भाषा में ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीक की पढ़ाई हो सकती है,तो हिंदी में क्यों नहीं हो सकती ? हिंदी विश्व की सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं में दूसरे स्थान पर है| इसके पास देवनागरी जैसी वैज्ञानिक लिपि है,जिसमें जो बोला जाता है वही लिखा जाता है| यह अत्यंत सहज और सरल भाषा है,किन्तु इसको माध्यम के रूप में न अपनाने के कारण देश की प्रतिभाओं का गला घोंटा जाता है|
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की उक्त रपट में अंग्रेजी माध्यम लागू करने के कारणों के बारे में भी विस्तार से बताया गया है और कहा गया है कि,यह निर्णय अभिभावकों की मांग पर लिया गया है| अभिभावक अपने बच्चों को कारपोरेशन के स्कूलों की जगह अंग्रेजी माध्यम वाले निजी स्कूलों में प्रवेश दिलाना पसंद कर रहे हैं| इस तरह कारपोरेशन के स्कूलों में छात्र-संख्या घट रही है| इस तरह तो देशभर के सभी सरकारी स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम में बदलना पड़ेगा,क्या आपकी यही योजना है ? महोदय,जब आप चपरासी तक की नौकरियों में भी अंग्रेजी अनिवार्य करेंगे तो अंग्रेजी की मांग बढ़ेगी ही| यह एक ऐसा मुल्क बन चुका है,जहां का नागरिक चाहे देश की सभी भाषाओं में निष्णात हो,किन्तु एक विदेशी भाषा अंग्रेजी न जानता हो,तो उसे इस देश में कोई नौकरी नहीं मिल सकती| चाहे वह इस देश की कोई भी भाषा न जानता हो,और सिर्फ एक विदेशी भाषा अंग्रेजी जानता हो,तो उसे इस देश की छोटी से लेकर बड़ी तक सभी नौकरियाँ मिल जाएंगी| छोटे-से-छोटे पदों से लेकर यूपीएससी तक की सभी भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी का दबदबा है| उच्चतम न्यायालय से लेकर सभी उच्च न्यायालयों में सारी बहसें और फैसले सिर्फ अंग्रेजी में होने का प्रावधान है| यह ऐसा तथाकथित आजाद मुल्क है,जहां के नागरिक को अपने बारे में मिले फैसले को समझने के लिए भी वकील के पास जाना पड़ता है और उसके लिए भी वकील को पैसे देना पड़ते हैं| मुकदमों के दौरान उसे पता ही नहीं होता कि,वकील और न्यायाधीश उसके बारे में क्या सवाल-जबाब कर रहे हैं| ऐसे माहौल में कोई अपने बच्चे को अंग्रेजी न पढ़ाने की मूर्खता कैसे कर सकता है ? आप जिस अमेरिका और इंग्लैंड की अंग्रेजी हमारे बच्चों पर लाद रहे हैं,उसी अमेरिका और इंग्लैण्ड में पढ़ाई के लिए जाने वाले हर शख्स को आइइएलटीएस(इंटरनेशनल इंग्लिश लैंग्वेज टेस्टिंग सिस्टम) अथवा टॉफेल(टेस्ट आफ इंग्लिश एज फॉरेन लैंग्वेज)जैसी परीक्षाएं पास करनी अनिवार्य हैं| दूसरी ओर,हमारे देश के अधिकाँश अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में बच्चों को अपने देश की राजभाषा हिन्दी या मातृभाषा बोलने पर दंडित किया जाता है,और आपकी सरकार कुछ नहीं बोलती| यह गुलामी नहीं तो क्या है ? बेशक गोरों की नहीं,काले अंग्रेजों की गुलामी| गुलाम व्यक्ति ही सोचता है कि,मालिक की भाषा बोलेंगे तो फायदे में रहेंगे| महोदय,आप तो चुनौती-भरा और कठोर निर्णय लेने के लिए विख्यात हैं| अंग्रेजी की अनिवार्यता हटाइए सरकारी नौकरियों से,न्यायपालिका और कार्यपालिका से और देखिए,रातों-रात अंग्रेजी की जगह मातृभाषाओं के माध्यम से पढ़ने वालों की मांग बढ़ जाएगी| फिर आपको प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक समूची शिक्षा व्यवस्था मातृभाषाओं के माध्यम से लागू करना पड़ेगा और आप देखेंगे कि इस देश की प्रतिभाएं फिर से दुनिया में अपनी कीर्ति-पताका फहराएंगी| इतिहास में आपका भी नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा|

#अमरनाथ शर्मा
परिचय:अमरनाथ शर्मा लेखन के क्षेत्र में एक पहचाना हुआ नाम है| आप ‘हिन्दी बचाओ मंच’ के संयोजक होने के साथ ही हिन्दी विभाग(कलकत्ता विश्वविद्यालय) में प्राध्यापक एवं अध्यक्ष रहे हैं |

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।