जो जाड़े की गलन से
गर्मी की तपन से
बरसात की सीलन से उन्हें बचाता था।
खुद धूप, ठंड , बरसात को झेलकर
छप्पर को सहारा देने वाले दोस्त जैसे थमले,
उन पर होने वाले आँधियों के हमले।
लेकिन फिर भी वो हमेशा छप्पर के साथ खड़ा रहता था,
आँधियों से टकराने के लिए अड़ा रहता था।
समय बीतता गया
धीरे-धीरे छप्पर जीर्ण होने लगा
अपने ऊपर उगे घास फूस के कारण
थमले भी उसका साथ छोड़ने लगे,
और वो चार जिंदगियां भी उससे मुँह मोड़ने लगे।
जिन चार जिंदगियों ने उसके नीचे गुजारा किया ,
जिनको उस छप्पर ने सहारा दिया ।
आज समय बदलने पर वही उससे मुँह मोड़ने लगे,
अपनी स्वार्थी प्रकृति दर्शाकर उसे तड़पता हुआ छोड़ने लगे।
ये एक छप्पर नहीं एहसास की व्यथा है,
यही मानव जीवन और समाज की कथा है।
#अजय एहसास
परिचय : देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के सुलेमपुर परसावां (जिला आम्बेडकर नगर) में अजय एहसास रहते हैं। आपका कार्यस्थल आम्बेडकर नगर ही है। निजी विद्यालय में शिक्षण कार्य के साथ हिन्दी भाषा के विकास एवं हिन्दी साहित्य के प्रति आप समर्पित हैं।