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संस्कृति की जन्भदात्री है, यह हमारा देश।
अलग-अलग धर्म है,तनिक भी नहीं द्वेष।।
ऋषि मुनि गुरूजन का , संस्कृत था प्राण।
रचते-रचते रच दिए,कितने ही वेद-पुराण।।
धरा रही दानवों की,भूल गयी संस्कृति।
हिंसात्मक न सोच हो, ना फैलेगी विकृति।।
संस्कृत से समाज का,कालान्तर से उद्धार।
नित-दिन उजागर हो,सभ्यता का द्वार।।
जन्मदात्री है भाषा की,मनीषियों की शान
पढ़ते-पढ़ते दे गए, हमें संस्कृति का ज्ञान।।
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धर्म
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हरिनाम में ही बसा है, आज ज्ञान का आधार।
जो भाव से जप करे ,पाए फल अपार।।
हरि गुण का आभास था, लगा दिया ध्यान ।
भक्त प्रहलाद की आस, आएँगे जरूर नारायण।।
हरि मिले श्रद्धा भाव से, कहते हैं वेद पुराण।
दो घडी मन से जप लो, बेडा पार करेंगे हनुमान।।
सतयुग बीता धर्म से,है कलयुग को अभिमान।
बीते समय की बात पर,भला कैसे हो गुमान।।
पग-पग पर फैले है,साधु संत फकीर।
मौके की ताक है, कब मिल जाये जंजीर।।
“आशुतोष”
नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति
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