सब कुछ होते हुए भी
यहाँ वहाँ खोजता रहा।
जिसे तुझे खोजना था
वो तेरे से दूर होता गया।
और तू प्रभु का खेल
कभी समझ न सका।
बस दौलत के पीछे ही
तू सदा भागता रहा।।
इस दौलत के जाल को
अच्छे अच्छे नहीं समझ सके।
बस इसके मायावी जाल में
निरंतर फसते गये।
और अपने सुखचैन को
खोते चले गये।
पर सच्चे सुख को
पहचान ही न सके।।
ह्रदय की गैहराईयों में
शांति से बैठकर सोचो।
और अपनी आत्मा के
भावों को स्वयं में देखो।
सत्य तुमको दिख जायेगा
जिसपर अमल करना पड़ेगा।
तभी तेरा मानव जीवन
कमल सा खिल जायेगा।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन, मुंबई