
27/01/2020 को प्रारंभ हुआ एनएसएस कैम्प आज समाप्त हो गया। इस दौरान हमने उन अनेक पहलुओं को छुआ जो कि हमने अभी तक पुस्तकों में ही देखा था, गांव और गांव का रहन-सहन वैसे हम भी गांव से आते हैं पर हमारे गाँव इन गांवों से अत्यंत भिन्न थे, इन गांवों के में आज भी नंगे बच्चे खेलते हुए देखे जा सकते थे, गांव में हम कैम्प करने वाले लड़के इनके हिसाब से लुटेरे ही थे, हमें स्थानीय स्तर पर यहाँ किसी भी प्रकार का सहयोग प्राप्त नहीं हुआ ग्रामीण से लेकर ग्राम प्रधान तक जिस स्कूल में हमारा शिविर था उसे सांसद जी ने गोद भी ले रखा है, स्कूल के अध्यापकगण बहुत अत्यधिक मिलनसार थे हम लोग जब खाना बनाते तो कई बार आकर मैम चेक करती थीं, स्कूल के आसपास खूब घूर गड्ढे हैं स्कूल लखनऊ गोण्डा मुख्य मार्ग से दो सौ मीटर दूरी पर ही होगा जैसे ही हम स्कूल के रास्ते पर पैर रखेंगे वैसे ही खुले में एक लाइन से शौच करते बच्चे दिखेंगे और काफी गंदगी भी है स्कूल के रास्ते में ।
स्कूल में हमने लगभग पचहत्तर पेड़ लगाए और सभी लग भी गए, कैम्प के प्रारंभ वाले दिन डा सिन्हा सर जी आए थे उन्होंने बताया था कि मैं नहीं कहता इस गांव को स्वच्छ करिए झाड़ू लगाइए कूड़ा उठाइए इत्यादि क्योंकि आज आप स्वच्छ करके जाओगे कल यह फिर गंदा कर देंगे, इसलिए कुछ ऐसा करो जिससे यह स्वयं स्वच्छ करने के लिए आगे आएं, हमने इसपर काफी प्रयास किया एक दिन हम लोगों को सर नगवा गांव ले गए जहां हम घर-घर सर्वे कर रहे थे जहां एक बूढ़े दादा मिले जिनकी स्थिति बहुत खराब थी उन्हें शिवानी बहन ने कुछ पैसे दिए और कभी भी मदद मांगने के लिए कहा हम सब का काम बंटा हुआ होता था हम सब स्वयं सेवक थे हमारा मोटो था मैं नहीं आप मेरी अधिकतर ड्यूटी किचेन में ही लगती थी मैं और अंतिमा दी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सातों दिन किचन में ही रहे हमारे साथ अगंत और रणविजय भाई भी थे रणविजय भाई हमारे कालेज के कर्मचारी हैं और थोड़ा बहुत ज्यादा बोलते हैं, हम रसोई में जूते पहनकर जाते थे इसलिए बच्चाराम काका नाराज हो गए और किचन का कुछ नहीं खाते थे बच्चाराम काका पिछले तेरह साल से कालेज की बस चला रहे हैं, कैम्प में हमारे कालेज के कई पुराने स्टूडेंट्स भी आए जो बड़े बड़े पदों पर थे जैसे बैंकर प्रिंसिपल प्रोफेसर व्यापारी इत्यादि. . उन्होंने हमें आगे बढ़ने के बारे बताया हमने उनसे खूब हंसी ठिठोली भी की मैंने पूछा सर क्या आशिकी पर लोन मिलेगा क्या, एनएसएस कार्यक्रम के मुख्य अधिकारी डा पुनीत सिंह सर जी और डा सुशील सिंह सर जी को हमे नजदीक से समझने का अवसर मिला दोनो सर देखने में अत्यंत भयानक प्रतीत होते हैं, हमने कैम्प में खूब इंजॉय किया इस दौरान कई लोग ऐसे मिले जिन्हें हमने करीब से समझा इनमें अन्तिमा दी शिवानी जी नेहा जी और जो सबसे डैंजर थी वह गरिमा जी पुराने दोस्त तो थे ही और कई नए दोस्त भी यहाँ मिले, मेरी खाना बनाने में ड्यूटी रहती थी इसलिए लड़कियों से अच्छी जान पहचान हो गई सात दिन में मेरी तीन रूमालें चोरी हुईं और फिर होती भी लेकिन मैंने खरीदीं ही नही, मैंने छः दिन कैम्प में खाना खाया पर बीच में एक दिन नही खाया था उसका मुझे अफसोस भी है अफसोस ही नही बहुत अफसोस है इस कैम्प के दौरान ही मैंने अपने एक अजीज से दुबारा बोला, जिससे जिंदगी में कभी न बोलने की कसम खाई थी, और सोचा था न उसे कभी देखूँगा न उसके साथ बैठूंगा न उसका छुआ कुछ खाऊँगा, मैं मन को तो रोक ले गया पर हाथों को नहीं रोक पाया उसे मिसकाल भी की और बात भी चाहे दो वाक्य ही मुझे यह जानकर अच्छा लगा कि उसने मेरे बारे गलत तो सोच रखा है पर इतना भी नहीं जितना मैंने सोचा और सुना है, मैं आटो में लटका था उसने मुझे बैठने को सीट दी, मैंने उसका छुआ नहीं खाया उसने रोज मेरे हाथों की चाय पी मेरा लाया सामान खाया और जहां मैं उससे इतना भागता था अब भागने का कारण चाहे घृणा शर्म अथवा भय समझिए पर वह मेरे बातों में बोलती थी, मैं आज जरूर उसकी खरीदी चीज खाता पर उसने कुछ खिलाया ही नहीं शायद उसे बुरा लग गया और बुरा लगना लाजमी भी था , उसकी जगह मैं होता तो पता नहीं क्या करता वह फिर भी बहुत सज्जन है, मुझे बहुत कुछ सीखने समझने को कैम्प में मिला सिवाय उसके बस, कुछ भी अधूरा नहीं रहा कैम्प में सब बेहतर हुआ मुझे कैम्प में निश्छल व्यक्तित्व के तीन व्यक्ति मिले जिनके संघर्ष ने मुझे काफी प्रभावित किया, अन्तिमा दीदी शिवानी दीदी और नेहा बहन बहुत याद आओगे आप लोग अगर जिंदगी रही तो फिर कभी मिलेंगे।
आशुतोष मिश्र तीरथ
गोण्डा