#कीर्ति जायसवालप्रयागराज(इलाहाबाद)
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भाग – १
मछली आज उड़ना चाह रही है;
मछली आज चलना चाह रही है।
नीरस हो चुकी है
वह इस समुद्र में रह-रह कर;
ऐसा कतई नहीं
पसंद नहीं उसे अपना देश;
वह तो पूरी दुनिया घूमना चाह रही है।
न तो उसके पास पग है;
न तो उसके पास पर है;
सांस भी उसकी उसी में ही अटकी हुई है;
वह उस दलदल से निकलना चाह रही है।
कोई तो उसे पग ला कर दे दो;
कोई तो उसे पर ला कर दे दो।
बहुत समय से वह
बहुत कुछ कहना चाह रही है;
कुछ न कह पाते हुए भी
वह आज सब कुछ कहना चाह रही है।
मछली आज उड़ना चाह रही है;
मछली आज चलना चाह रही है।
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