आयो रे वसंत फिर आयो रे

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asha jakad

आयो आयो रे वसंत फिर आयो रे
खुशियों का संदेश फिर  लायो रे।।
वसंत के आते ही मानव मन में  नवीन  चेतना का  संचार  होने लगता  हैऔर  आशाओं के फूल  खिलने  लगते हैअं।शिशिर की शीत से ठिठुरे हुए मन को जब वासंती उष्मा का मृदुल स्पर्श  प्राप्त  होता है तब मन को  आत्मिक सुख की  अनुभूति होती है और  ऐसा  लगता है कि प्रकृति भीआनन्दित होकर अंगडाई ले रही है।।वन- उपवन में  पेड – पौधों  पर नयी कोपलें  फूटने लगती है।खेतों  में सरसों  की फसल सुगंध  बिखेरने लगती। है।नये फूलों पर तितलिया सौन्दर्य  को  बढा देती हैं ।
वसंत है तो फूल हैं ।वसंत का अर्थ  है सौन्दर्य , श्रंगार, उल्लास ,आनन्द  , चपलता व  चंचलता ।सच वसन्त  मानव मन में  रस का संचार  करता है। ” रे मन तू क्यों  है उदास,  जिन्दगी  का  साज  वसंत  आ गया । गिले  शिकवे  नही, मानव मन ही नहीं  प्रकृति भी नयी खुशबू  से सुरभित  होने लगती है।वन- उपवन  नव पुष्प पल्लवो से सजे दिखाई देते हैं  धान की  बालियाँ नये दूध से भरकर लहराने लगती।है। प्रकृति  का यह  खिलखिलाता रूप मानव मन में  नवीन स्पन्दन  भर देता है। प्रकृति  का सौन्दर्य देख मन में  नये छन्द  उमड़ने लगते हैं  और मानव मन झूम-झूम कर  नयी ताल के साथ  गुनगुनाने लगता है ।
मन होगया पलाश  तुम्हारे  आने  पर
महक उठी हर सांस तुम्हारे  आने पर

नये  सुमन की मधुर  गन्ध सर्वत्र   वातावरण में मादकता  भर देती है। हवाएँ  सौरभ का पानकर
इठलाती हुए दिक – दिगन्त को सुवासित करती  है
तो मन कह उठता है -चल रही  मधुर  वासंती बयार
कर रही जैसे पिया का इन्तजार

ऐसा ठुमकता गमकता रंग -रंगीला,  रसीला वसंत जब रूप ,रस , रंग – गन्ध  के  खजाने को  लुटाता हुआ आता है तब धरती  सरसों की पीली चादर पहनकर  दुल्हन सी सज जाती है।बौराई हुई अमराई में  कोयल
आम के  पेड पर चढकर वसंत का यशोगान करती है।अहा  ऋतुराज  वसंत आ गया
सच  ,वसंत   का तो नाम सुनकर  तन में  नयी स्फूर्ति  सी भर जाती है ।वसंती रंग  की लहर  लहराने  लगती  है। आँखों में  इन्द्रधनुषी रंगों  का झरना  सा बहने लगता है।गीता में  भगवान् श्रीकृष्ण वसंत ऋतु को अपनी  विभूति  बताते हुए  कहते हैं  ऋतुओं में  वसंत मैं  हूँ ।सच जब तक कृष्ण  ब्रज में  रहे वहाँ  बारहों मास वसंत  रहा लेकिन  उनके  जाते ही पावस ऋतु  आ गई ।कृष्ण  विरह में  गोपिया उद्धव  से कहने लगी
निसिदिन बरसत नैन हमारे
सदा रहत पावस ऋतु हम पर
जबते स्याम सिधारे।
पतझर  न हो तो वसंत  कैसा? पतझर न हो  तो नयी कोपलें प्रस्फुटित  कैसे  होती ,प्रकृति  की रमणीयता कैसे प्रकट होती ?इस रमणीयता को प्राप्त करने के  लिए  वसंत आने से पहले  पेड- पौधे  अपने  पत्ते  त्याग देते हैं  तब उनके  भीतर नवीन सौन्दर्य  प्रस्फुटित  होता  है।वसंत उनका बाह्य  सौंदर्य नहीं  दिखाता बल्कि  उनके भीतर छिपे सौन्दर्य को  प्रकट करता है।  जैसे पेड – पौधों  की  शाखाओं  पर नव सुमन खिलकर विहंसते लगते हैं  ऐसे  ही  मनुष्य का मन भी  आनन्दित  होकर प्रसन्नता  प्रकट करता है,
गुनगुनाता है और  झूम-झूम कर नृत्य करता है । सच वसन्त के स्वागत में  तितलियां  उड़ती हैं, कलियाँ खिलती हैं ,  हवाएँ  महकती हैं और भ्रमर गुनगुनाते हैं  अरे वसंत  तुम्हारा अभिनन्दन ।
आशा जाकड़ 

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