अज्ञेय में अलंकार की तलाश 

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jiyaur
अज्ञेय की अलंकारधर्मिता के नव्य आयाम….. ये डा प्रभात कुमार प्रभाकर की आलोचना की नई किताब है. ये कहने की कतई ज़रूरत नहीं कि अज्ञेय पर अब तक जितनी भी किताबें  हैं उसमें अलंकार की दृष्टि से उनकी रचनाओं को समझने का यह पहला प्रयास है. ज़ाहिर है रचनाकार ने इसमें मेहनत भी ख़ूब की होगी. जो उनकी हर पंक्ति से झलकता है.

हिन्दी साहित्य का आधुनिक काल में भारतेंदु के बाद अज्ञेय सबसे प्रतिभाशाली रचनाकार हैं. वो प्रयोगवाद के प्रवर्तक, तथा तार सप्तक के सम्पादक भी हैं. हिन्दी में अस्तित्ववाद और फ़्लैश बैक शैली भी उन्हीं की रचनाओं में सबसे पहले झलकता है. उन्होंने नये प्रतीक और नई भाषा का भी ईजाद किया.

डा प्रभाकर ने भूमिका आदि के अतिरिक्त सात अध्याय में अज्ञेय की अलंकारधर्मिता को समझने का प्रयास किया है, जिसमें अज्ञेय का अलंकार विषयक दृष्टिकोण भी शामिल है. कभी डा रामविलास शर्मा ने कहा था अज्ञेय की भाषा शैली बहुत रची हुई है बहुत गढ़ी हुई है. प्रभाकर ने अपनी किताब में इसकी बेहतर ढंग से पुष्टि की है. उन्होंने उनकी कविताओं के ज़रिये अज्ञेय के शब्दालंकार, और अर्थालंकार को समझाने का प्रयास किया है. लेखक ने बताया है कि अज्ञेय में उपमा अलंकार का प्रयोग सर्वाधिक हुआ है. कुछ और अलंकार भी देखे जा सकते हैं, जैसे

वासना की पंख सी फैली….. उपमा अलंकार

उड़ चल हारिल लिए हाथ में…. अन्योक्ति

मलय का झोका बुला गया…. मानवीकरण… आदि

शायद यही कारण है कि लेखक को मानना पड़ा कि अज्ञेय अलंकृत भाषा के साहित्यकार है, और जिसकी तसदीक के लिए लेखक को मुकम्मल किताब रचनी पड़ी.
कहना न होगा कि अज्ञेय ने जिस प्रयोगवाद की नींव डाली थी उसमें नित्य नये प्रयोग हो रहे हैं. ये किताब अज्ञेय को समझने केलिए  लाज़िम पुस्तक होगी. किताब की छपाई किसी अलंकार की तरह ही बेहद खूबसूरत है जो हमें अपनी जानिब खीच लेता है
#डॉ.जियाउर रहमान जाफरी 
परिचय : डॉ.जियाउर रहमान जाफरी की शिक्षा  एम.ए. (हिन्दी),बी.एड. सहित पीएचडी(हिन्दी) हैl आप शायर और आलोचक हैं तथा हिन्दी,उर्दू और मैथिली भाषा के कई पत्र- पत्रिकाओं में नियमित लेखन जारी हैl प्रकाशित कृति-खुले दरीचे की खुशबू(हिन्दी ग़ज़ल),खुशबू छूकर आई है और चाँद हमारी मुट्ठी में है(बाल कविता) आदि हैंl आपदा विभाग और राजभाषा विभाग बिहार से आप पुरुस्कृत हो चुके हैंl आपका निवास बिहार राज्य के नालंदा जिला स्थित बेगूसराय में हैl सम्प्रति की बात करें तो आप बिहार सरकार में अध्यापन कार्य करते हैंl

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।