
धूप कङ़कती, छाँव बहकती
क्या पैगाम लिखूँ
गीत गजल का भीगा सावन
किसके नाम लिखूँ।
कंधों पर बेताल सरीखे
संविधान के सारे आखर
घोर निराशा की भट्टी में
सुलग रहा है सूरज डरकर
रोज हादसे अखबारों में
क्या अंजाम लिखूँ।
अपनों की झूठी मुस्कानें
तन में मन में आग लगाती
दौलत कब देती खुशहाली
मृगतृष्णा केवल भरमाती
झूल रहे फाँसी पर सपने
क्या परिणाम लिखूँ।
रोग ,शोक ,दुख कैसा भी हो
रंगों के विज्ञापन जारी
ममता ,करुणा नेह नीर ने
कर ली मरने की तैयारी
लंका का हूँ एक निशाचर
कैसे राम लिखूँ।
डॉ पूनम गुजरानी
सूरत