भगोरिया का रंग है

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dashrath
 नाक सुआसी सी शोभती,
 खिलते लाल कपोल।
आंखन अंजन आंझके,
नैना बने अमोल।।
 हंस उड़ा बागन चला,
ले मोतिन की आस।
नगनथ देखो नाक को,
मन में होत उदास।।
नदी नाव संजोग से
बहती पानी धार।
नाविक नदिया एक से
,म्यान फंसी तलवार।।
तोता मैना बोलती,
चिड़िया करती चींव।
 कोयल मीठा गा रही,
सखी संग है पीव।।
कामदेव सेना चली,
 करती चुन चुन वार।
 भगोरिया का रंग है,
 करता है इजहार।।
 मदन धनुष को धारके ,
तक तक मारे बाण ।
फूलकली बरसा करे
घायल होते प्राण।।
 केरी रस से भर गई
मिट्ठू मारे चोंच।
 रस बरसे रस आत है,
मैंना कर संकोच।।
 कमल पंखुड़ी खिल गई,
भंवरों की ले आश।
चंपा चटकी पीतसी,
सरिता सरवर पास।।
कपोत कसके रात भर,
मुर्गा बोले भोर।
 मोर मोरनी छुप गए
नैना होते चोर।।
पलाश भी अब दहकते,
 बिछुड़ी करें तलाश।
 चूड़ियाँ की खनक उठी,
मंगल मोती आस।।
क्वारों की टोली चली,
 ले कंगन सिन्दूर।
हॉट बाट में घूमते,
ले मस्ती भरपूर।।
 सखियां पान चबा रही,
मीठा खायें धार।
संग सखी शरमा गई,
सौदा भया बजार।।
जीवन संगी को चुना,
 छोड़े लाख हजार।
 साजन सजनी मिल गए,
नैना करें शिकार।।
#डॉ दशरथ मसानिया 
आगर मालवा 

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