जिंदगी कभी-कभी,
बेमानी-सी लगती है।
टूटे हुए दरख्त की,
कहानी-सी लगती है।
तन्हाई की रात़ों में,
जिन्होंने दिया साथ।
आज वे भी कर रहे हैं,
अपने पीछे हाथ
रोशनी की किरण भी,
अंधियारी-सी लगती है।
शाखों पे खिले थे,
अनगिनत फूल।
हवा चली ऐसी,
मिल गए सब धूल।
यादों की महक भी,
अब पुरानी लगती है।
हौंसला क्या रखें,
उम्मीद-चिराग बुझ गएl
फूल खिलने से पहले,
बेमौसम ही झड़ गए।
दोस्तों की भीड़ भी,
बेगानी-सी लगती है।
तूफां,भूचाल आए,
पर मैं अडिग रही।
अपनों ने जख्म दिए,
भय से सिहर गई।
जख्म तो ताजा है,
टीस पुरानी लगती हैl
जमाने की चाल सहते,
अरसा गुजर गया।
उपवन क़ो सींच-सींच,
निर्जन बना दिया।
अजीजों के रहमो-करम भी,
शैतानी-सी लगती हैll
#आशा जाकड़
परिचय: लेखिका आशा जाकड़ शिकोहाबाद से ताल्लुक रखती हैं और कार्यक्षेत्र इन्दौर(म.प्र.)है। बतौर लेखिका आपको प्रादेशिक सरल अलंकरण,माहेश्वरी सम्मान रंजन कलश सहित साहित्य मणि श्री(बालाघाट),कृति कुसुम सम्मान इन्दौर,शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान(उज्जैन),श्री महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान(शिलांग) और साहित्य रत्न सम्मान(जबलपुर)आदि मिले हैं। जन्म१९५१ में शिकोहाबाद (यू.पी.)में हुआ और एमए (समाजशास्त्र,हिन्दी)सहित बीएड भी किया है। 28 वर्ष तक इन्दौर में आपने अध्यापन कराया है। सेवानिवृत्ति के बाद काव्य संग्रह ‘राष्ट्र को नमन’, कहानी संग्रह ‘अनुत्तरित प्रश्न’ और ‘नए पंखों की उड़ान’ आपके नाम है।
बचपन से ही गीत,कविता,नाटक, कहानियां,गजल आदि के लेखन में आप सक्रिय हैं तो,काव्य गोष्ठियों और आकाशवाणी से भी पाठ करती हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी हैं।