बहु ने बनकर दिखाया बेटी 

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sanjay
वर्त्तमान समय की चमक दमक को देखकर अच्छे से अच्छे लोग भी इस कलयुग में बहा जाते है / जब की उन्हें सही गलत का अंदाजा भी नहीं होता की वो क्या कर रहे है, और इसके क्या परिणाम आगे समाने आने वाले है / हर मां  और बाप अपने बच्चो को सदा ही अच्छे संस्कार देते है , परन्तु कभी कभी उनका विपरीत असर भी हमें देखने को मिलता है / हालांकि इसका प्रतिशत लगभग ५-७% ही होता है / इस विषय को समझने के लिए में एक उदहारण देना चाहूंगा, जिससे उपरोक्त विषय को हम सही साबित कर सके / एक माध्यम वर्ग के परिवार में सदा ही एक कमाने वाला और कम से कम ३-४ लोग खाने वाले होते है / घर का मुखिया पूरा प्रयास करता है की वो अपने बच्चो को सही तालीम दे, ताकि उनका भविष्य सही बने / क्योकि जीतनी  परेशानियों का समाना हम लोगो ने किया, उतनी हमारी औलाद को न सहना  पड़े,  इसलिए वो उन्हें सही शिक्षा देना चाहते है / बात एक माधयम परिवार की है जहाँ पर घर का बेटा अब खुद कमाई करने लगा है / जिसके कारण उसे अभिमान सा आ गया है,  इसे के चलते हुए वो बार बार अपनी माँ से झगड़ पड़ता था / जबकि ये वो ही माँ है , जो बेटे के लिए पति से भी लड़ जाती थी /
 मगर अब पैसे से आत्मनिर्भर होने के कारण वो अपने पिता के समझाने पर भी उन्हें नजरअंदाज करता रहता था , और उन्हें कहता है की अभी तो उम्र है   शौक करने की, खाने, पहनने की, और आदि करने की, जबकि आपकी तरह मुँह में दाँत और पेट में आंत ही नहीं रहेगी, तो क्या करूँगा ? घर की बहु नीता भी भरे पूरे और संस्कारित परिवार से आई थी  / जिसके कारण बेटे की गृहस्थी अच्छी तरह से जम गई थी / बेटे की नौकरी अच्छी थी, तो दोस्त यारी भी उसी हिसाब से आधुनिक विचारो वाली थी / बहू को अक्सर वह पुराने स्टाइल के कपड़े छोड़ कर आधुनिकता में ढालने  को कहता, मगर बहू मना कर देती …..वो कहता “कमाल करती हो तुम, आज कल सारा ज़माना ऐसा करता है, मैं क्या कुछ नया थोड़ी ही कर रहा हूँ / पैसा आदि तुम्हारे सुख के लिए ही तो कमा रहा हूँ , और तुम हो कि उन्हीं पुराने विचारों में अटकी हो / अच्छा आधुनिक जीवन क्या होता है, तुम्हें मालूम ही नही ? नीता कहती है की ये मुझे जानना भी नहीं है / मै वास्तिकता और आधुनिकता में विश्वास रखती हूँ / दोनों के विचार अलग अलग थे, फिर दोनों में प्यार हुए स्नेह था / समय गुजरते देर नहीं लगता और एक हँसते खेलते खिलखिलाते परिवार में अचानक ही पापा को हार्ट अटेक के कारण तबियत ख़राब हो जाती है, और उन्हें  तुरंत ही हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ता है/ मामला गंभीर था, इस कारण डॉक्टरों ने उन्हें आई. सी. यू. में  शिफ्ट कर दिया / डॉक्टर ने पर्चा पकड़ाया, तीन लाख और जमा करने को कहा । जबकि डेढ़ लाख का बिल तो पहले ही भर दिया था / मगर अब ये तीन लाख बेटे के लिए भारी लग रहे थे क्योकि उसने पैसे के महत्त्व को समझा ही नहीं था । वह बाहर बैठा हुआ सोच रहा था कि अब क्या करे, और कहाँ से पैसो का इंतजाम करे /  उसने अपने कई दोस्तों को फ़ोन लगाया कि उसे मदद की जरुरत है, मगर किसी ने कुछ, तो किसी ने कुछ, बहाना कर दिया और अपने आप को दूर कर लिया ।आँखों में आँसू थे, और वह मन उदास था, तभी उसकी पत्नी नीता खाने का टिफिन लेकर आई और बोली, क्या हुआ, अपना ख्याल रखना भी जरुरी है। ऐसे उदास होने से क्या होगा ? हिम्मत से काम लो, बाबू जी को कुछ नहीं होगा, हम सब है न, आप चिन्ता मत करो । कुछ खा लो फिर आपको पैसों का इंतजाम भी तो करना है / मैं यहाँ बाबूजी के पास रूकती हूँ, आप खाना खाकर पैसों का इंतजाम कीजिये/ पति की आँखों से टप-टप आँसू झरने लगे और नीता समय गई की सारे कलयुगी दोस्तों ने हाथ खड़े कर दिए है । ये बात वो अपने पति की खामोश और सुनी निगाहो से जमीं की तरफ देख रही थे उससे समझ गई थी /
नीता ने अपने पति की पीठ हाथ रखते हुए उन्हें सहलाने लगी/और कहने लगी की सबने मना कर दिया ना / सब ने कोई न कोई बहाना बना दिया ना / आज पता चला कि ऐसी दोस्ती तब तक की है, जब तक जेब में पैसा है /  किसी दोस्त ने भी हाँ नहीं कहा की में देता हूँ , जबकि हमने उनकी पार्टियों पर  लाखों उड़ा दिये थे / इसलिए में सदा ही आपको समझने की कोशिस करती थी, परन्तु आप नहीं समझे / इसके लिए ही माता पिता पैसे बचाने को कहते थे / अब आप पैसे की चिंता मत कीजिये मेरे पास दो लाख रुपया है, और एक लाख मेरे भाई लेकर आ रहे है / तुम्हारी ख्वाहिशों को मैंने सम्हाल रखा हुआ है/  जो तुम मुझे नई नई तरह के कपड़ो और दूसरी चीजों के लिए ,मुझे पैसे देते थे, वो सब मैंने सम्हाल रखे हैं / माँ जी ने फ़ोन पर बताया था, तीन लाख जमा करने हैं।
नीता तुम सचमुच अर्धांगिनी हो, मैं तुम्हें आधुनिक बनाना चाहता था,  और में हवा में उड़ रहा था, जो की मेरा झूठा अभिमान था / मगर तुमने अपने संस्कार नहीं छोड़े…. आज वही काम आए हैं / ये सब देखकर सामने बैठी माँ के आँखो में आंसू आ गए / उसे आज  खुद के नहीं  बल्कि पराई माँ के संस्कारो पर नाज था, और वो बहु के सर पर हाथ फेरती हुई ऊपर वाले का शुक्रिया अदा कर रही थी, की तुमने हमें बहु नहीं बल्कि बेटी दी है, जो की हमारे बेटे से बढ़ाकर है/

#संजय जैन

परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों  पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से  कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें  सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की  शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।

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