हिन्दी साहित्य का पक्ष रखने के लिए प्रवक्ताओं की आवश्यकता

0 0
Read Time9 Minute, 27 Second

arpan jain

हजारों-हजार सालों का हिन्दी का समृद्धशाली इतिहास और गौरवशाली वर्तमान जिस पर सम्पूर्ण विश्व अपना समाधान खोजता है। बात यदि गीता और रामायण जैसे धर्मग्रंथों की हो या आदिवासी या दलित विमर्श की हो, इतिहास के मोहनजोदड़ों संस्कृति की हो चाहे सभ्यता के युगपरिवर्तन की। विश्व जितना भारत को जान पाया है वो बदौलत हिन्दी साहित्य ही है जिसका प्रसार और प्रभाव विश्व की अन्य भाषाओँ में अनुवाद से हुआ है। हर व्यावहारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं का समाधान हिन्दी साहित्य में उपलब्ध है। परन्तु हिन्दी जिस दिशा में आज जा रही है वो हिन्दी के लिए ही खतरा पैदा कर रहा है।

वर्तमान समय विपणन या कहे प्रचार-प्रसार का है, जिसमें एक छोटी-सी चाय उत्पादक या विपणन संस्थान भी जब बाजार में अपना उत्पाद लाती है, तो उसके लिए एक मार्केटिंग योजना बनाती है। और उत्पाद कितना भी अच्छा हो उसके लिए वर्तमान दौर में एक अच्छी मार्केटिंग योजना का क्रियान्वन अधिक मायने रखता है, बिना श्रेष्ठ मार्केटिंग और प्रचार-प्रसार के सोना या हीरा भी ज्यादा ग्राहकों तक नहीं पहुँचाया जा सकता। तब तो समय या कहें बाजार की मांग के अनुसार पैकेजिंग और ब्रांडिंग के युग में यह बात हर महत्वपूर्ण उत्पाद, योजना, भाषा, व्यक्ति और कंपनी पर लागू होती है।

हिन्दी भाषा भी वर्तमान में समृद्धशाली तो है परन्तु बड़े और झंडाबरदार लोगो के व्यामोह से ग्रसित भी है। हिन्दी का शाश्वत और क्षमतावान साहित्य वैश्विक पटल के साथ-साथ हिंदुस्तान में भी प्रचार और प्रसार मांगता है। हिन्दी के पास अधिक संभावनाशील और ऊर्जावान साहित्यकार तो है परन्तु उनका प्रबंधन और विपणन (मार्केंटिंग) का दायरा कमजोर होने से हिन्दी के रचनाकारों का पेट अंग्रेजी के रचनाकारों की अपेक्षा अमूमन खाली ही नज़र आता है। भारत की लगभग ५० करोड़ से अधिक आबादी आज हिन्दी को अपनी प्रथम भाषा मानती तो है, परन्तु उसकी साहित्यसर्जना युवा पीढ़ी से उतनी दूर भी होते जा रही है, यह कटु सत्य है।

देशभर में हो रहे हिन्दी के आयोजनों, साहित्य उत्सवों, लिटरेचर फेस्ट, पुस्तक मेला, गोष्ठी, परिचर्चा और टीवी चैनलों आदि में जब हिन्दी साहित्य का पक्ष रखा जाता है तो सबसे पहले तो आयोजकों को इस व्यामोह से बाहर निकलना होगा कि फलाँ नाम बड़ा है, बड़े लोग है आदि। उसे ये देखना चाहिए कि किसने कितना काम हिन्दी भाषा के लिए किया है, किस क्षेत्र में किया है, उसका अध्ययन का दायरा कितना है और उसके पास समाज को चिंतन देने के लिए कितना विस्तारित क्षेत्र है। चूँकि इस दिशा में हिन्दी के साहित्यकारों और झंडाबरदार जो हिन्दी की चिंता कर रहे है उन्हें ज्यादा ध्यान देकर प्रवक्ताओं की फौज तैयार करना होगी जो सार्थक मंचों पर हिन्दी का पक्ष रख सके।

एक अच्छे प्रवक्ता के अभाव में हिन्दी के गुण-व्याकरण से समाज अपरिचित-सा रह जाता है और जानकारी का अभाव हिन्दी को अंग्रेजी या अन्य भाषा से बौना सिद्ध करता है। वैसे ही जैसे इस राष्ट्र में राजनैतिक समीकरणों और योजनाओं के साथ-साथ सरकार के अच्छे-बुरे काम या विपक्ष का मंतव्य रखने के लिए, टेलीविजन कार्यक्रमों में बैठे प्रवक्ताओं का अध्ययन ही उस दल का सटीक और व्यावहारिक पक्ष रखता है।

हिन्दीभाषा के प्रचार-प्रसार हेतु देश में कई संस्थान सक्रियता से कार्य कर रहे है, कोई पेट की भाषा बनाने पर जोर दे रहा है तो कोई राष्ट्रभाषा, कोई साहित्य में शुचिता की बात कर रहा है तो कोई नवांकुरों के प्रशिक्षण की। इन संस्थानों में अग्रणी नागरी प्रचारिणी सभा, मातृभाषा उन्नयन संस्थान, वैश्विक हिन्दी सम्मेलन, भारतीय भाषा सम्मलेन आदि है, इन संस्थानों को जिम्मेदारीपूर्वक हिन्दी के प्रवक्ताओं को तैयार करना होगा, जिनके व्याख्यान, उद्बोधन, आलेख और समाचार चैनलों पर हिन्दी का पक्ष रखने के तरीकों से हिन्दी का व्यापक प्रचार-प्रसार संभव है।

केवल कविता या कहानी लिखने मात्र से हिन्दी भाषा का सम्मान बने या बरकरार रहे ये संभव कम है। हिन्दी को जनभाषा के तौर पर स्थापित करने लिए सर्वप्रथम हिन्दी के गूढ़ समाधान परक साहित्य को जनमानस के बीच सरलता से पहुँचाना होगा। जो काम हिन्दी के प्रवक्ता बखूबी कर सकते है।

यदि इस दिशा में कार्य किया जाये तो हर नगर, जिला और प्रान्त से हिन्दी के प्रवक्ताओं को तैयार किया जा सकता है। उन्हें वरिष्ठजनों के मार्गदर्शन में अधिक सक्षमता से तैयार किया जा सकता है। उन्हें विस्तृत अध्ययन हेतु प्रेरित करके हिन्दी का पक्ष रखने के लिए जनता के बीच भेजा जा सकता है। क्योंकि वर्तमान बाजार विपणन (मार्केटिंग) आधारित है। और हिन्दी के प्रवक्ताओं की मांग भी बाजार आधारित है तभी हिन्दी का सर्वोच्च सदन हिन्दी के यशगान में अग्रणी हो सकता है। अन्यथा बेहतर मार्केटिंग के अभाव में हिन्दी क्षणे-क्षणे बाजार से गायब ही हो जाएगी।

#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’

परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर  साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

चाहत

Mon Dec 24 , 2018
चाहत है शिखर पर बैठकर आसमान छू लूँ। मैं बादलों को हाथों मे लेकर,जी भर खेलूं। मैं किरणों की कूची से चित्र निर्मित करूं सुनहरे सूरज से मांगकर चमकीला रंग ले लूँ। पत्थरों से निकल झरना बन विस्तार पाऊं गुनगुनाती सरिता बन गहरे समुद्र से मिल लूं। जंगल के ऊंचे […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।