Read Time1 Minute, 13 Second
रात तुमसे मिली जो
मेरी ये नजर,
रंग खाबों के अब तक
छूटे नहीं।
पल दो पल ही सही साथ
अपना सनम,
हाथ ऐसे मिले फिर
तो छूटे नहीं,
तुमने हमको कहा
इश्क का आसमां,
हम जमीं बन रहे
साथ छूटे नहीं।
आंख क्यों कर खुले
ये अमानत तेरी,
इनकी रंगीनियां
अब छूटे नहीं।
कोई वादा नहीं
ना कसम है कोई,
एक दुआ बस यही
साथ छूटे नहीं॥
#विजयलक्ष्मी जांगिड़
परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।
Post Views:
559
Fri Dec 1 , 2017
रावण नहीं राम बनिए, चरित्र के धनी बनिए। मधुर व्यवहार हमेशा करिए, विकारों से मुक्त रहिए। मर्यादा को धारण करिए, सदैव अच्छा आचरण करिए। सदा दूसरों का दुख हरिए, खुश रहिए,खुश करिए। राजयोग का पालन करिए, मनुष्य से देवता बनिए। जीवन अपना सफल करिए॥ […]