क्यों फांसी लगा लेते हैं?

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shyam palod

वक्त की आंधी में न जाने कितने लोग बह रहे हैं,
अपनी सांसों को फिजूल ही अलविदा कह रहे हैं।

रोज घटनाओं के काले पन्ने अखबारों में दिखाई देते हैं,
छोटी-छोटी बातों में भी बिना सोचे जहर पी लेते हैं।

तनावों की परिधि में रहकर अपने भीतर शैतान जगा देते हैं,
पीछे वालों की ज़िंदगी अभिशप्त कर क्यों फांसी लगा लेते हैं।

उसके दर्द की अनुभूति करो जिसका साथ असमय छूट जाता है,
कितना ही शक्तिशाली हो अपने खास के बिछोह में वो टूट जाता है।

जिम्मेदारियों के बोझ को अब उसे उठाना मजबूरी है,
जिसकी संगत को मझधार में छोड़ बना ली दूरी है।

उन साथियों से विनती इतनी करना चाहता है समाज,
वो थोड़ा सब्र करें,सब ठीक हो जाता है कामकाज।

बेवजह जिंदगी को दांव पर लगाना कायरता मानी जाती है,
शरीर त्यागकर शून्य में चले जाना क्रूरता पहचानी जाती है।

धैर्य और साहस के साथ जीवन का संचालन करना जरूरी है,
दुनिया को अलविदा कहने वालों ये तो सोचो ऐसी क्या मजबूरी है।

कुछ अपनों से भी अपनी समस्याओं के समाधान की बातचीत करो,
बड़ा कदम उठाने के पूर्व उसके परिणाम पर विचार करो।

चर्चाओं से अक्सर मन के भाव बदल जाया करते हैं,
इसीलिए बड़े बुजुर्ग हमें कठिनाइयों में समझाया करते हैं।

इसलिए जियो और जियो शान से मिली है जिंदगी हमें,
इसका करो सम्मान,बड़े मुश्किल से ये नसीब होती है हमें।

बेवजह मौत का आलिंगन करने वालों थोड़ा आगे तक सोचो,
अपनी देह में देवताओं का वास होता है इसे यूँ ही मत नोचो।
                    (निकट के एक अनुभव की पीड़ा पर )

                                                               #प्रो.(डॉ.) श्यामसुन्दर पलोड़

परिचय : प्रो.(डॉ.) श्याम सुन्दर पलोड़ पेशे से प्राध्यापक हैं। आप इंदौर में संस्कार कॉलेज ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज में विभागाध्यक्ष एवं प्रशासक का कार्य देख रहे हैं। राष्ट्रीय कवि एवं प्रसिद्ध मंच संचालक होने के साथ ही
पूर्व में उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत एवं सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेशचंद्र लाहोटी द्वारा मंच संचालन के क्षेत्र में सम्मानित हुए हैं।राष्ट्रीय स्तर पर वाद-विवाद प्रतियोगिता में विजेता वक्ता रहे हैं। समाचार पत्रों में स्तम्भकार के रुप में लेखन में सक्रिय है। टीवी चैनल पर भी आपके कई कार्यक्रमों का प्रसारण हो चुका है।

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One thought on “क्यों फांसी लगा लेते हैं?

  1. गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं बड़े भाग मानुष तन पावा सुर दुर्लभ सदग्रंथीन गावा।। यह मनुष्य जीवन बड़े उपायों और कर्मों से हमें प्राप्त होता है, यह मनुष्य शरीर देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, तो ऐसे मनुष्य शरीर को सत कर्म मे लगाकर अच्छे कार्य करना चाहिए, ना की किसी कार्य मे हानि पहुंचने पर या निराशा हाथ लगने पर मृत्यु को प्राप्त होना चाहिए।बल्कि उस कार्य को ओर तन्मयता से कर दुनिया मे अपनी छवी निङर मनुष्यो मे स्थापित करना चाहिए।धन्यवाद

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