“ये दुनिया देखेगी’
द्वार से निकली दर्द-ए-कराह तो,
ये दुनिया ही तुझे हँसकर देखेगी…
मत बन तू गुमनाम इस जहां में,
ये दुनिया ही तुझे डसकर देखेगी…
बनाती रही खुद का तमाशा तू,
तमाशबीन ये तुझे बनकर देखेगी..
झुकी रही अगर कदम-ब-कदम तू,
ये पूरी दुनिया तुझे तनकर देखेगी….
बिखर गयी अगर जरा सी भी तू,
हर शख्सियत तुझे सँवरकर देखेगी….
पतवार अगर ना संभाल पायी तू,
दुनिया नोका तेरी भवँर पर देखेगी….
अगर चल निकली मीठी वाणी पर,
हर इंसानियत तुझे अकड़कर देखेगी….
दीख जाएगा तुझे हर किसी का रूप,
जब तू एकबार खुद के अन्दर देखेगी….
भूल जाएगी हर गम को “मलिक”,
जब खुद में खुशी का समंदर देखेगी….
#सुषमा मलिक
परिचय : सुषमा मलिक की जन्मतिथि-२३ अक्टूबर १९८१ तथा जन्म स्थान-रोहतक (हरियाणा)है। आपका निवास रोहतक में ही शास्त्री नगर में है। एम.सी.ए. तक शिक्षित सुषमा मलिक अपने कार्यक्षेत्र में विद्यालय में प्रयोगशाला सहायक और एक संस्थान में लेखापाल भी हैं। सामाजिक क्षेत्र में कम्प्यूटर प्रयोगशाला संघ की महिला प्रदेशाध्यक्ष हैं। लेखन विधा-कविता,लेख और ग़ज़ल है। विविध अखबार और पत्रिकाओ में आपकी लेखनी आती रहती है। उत्तर प्रदेश की साहित्यिक संस्था ने सम्मान दिया है। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी आवाज से जनता को जागरूक करना है।