फिर उगते दरख़्त

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vivek

टूटकर फिर उगते दरख़्त।
उग कर फिर टूटते दरख़्त।।
हर मुश्किल से जूझते दरख़्त।
आसमां को चूमते दरख़्त।।
सर उठाए  झूमते दरख़्त।
सर झुकाए जमीं को चूमते दरख़्त।।
ज़मीन को न छोड़ते दरख़्त।
नहीं किसी को ढूंढते दरख़्त।।
  नहीं किसी को छोड़ते दरख़्त।
चाहतों की छांव से लुभाते दरख़्त।।
पवन के झोंके से गुनगुनाते दरख़्त।
कभी झूमते ,कभी गाते दरख़्त।।

                                                                             # विवेक दुबे

परिचय : दवा व्यवसाय के साथ ही विवेक दुबे अच्छा लेखन भी करने में सक्रिय हैं। स्नातकोत्तर और आयुर्वेद रत्न होकर आप रायसेन(मध्यप्रदेश) में रहते हैं। आपको लेखनी की बदौलत २०१२ में ‘युवा सृजन धर्मिता अलंकरण’ प्राप्त हुआ है। निरन्तर रचनाओं का प्रकाशन जारी है। लेखन आपकी विरासत है,क्योंकि पिता बद्री प्रसाद दुबे कवि हैं। उनसे प्रेरणा पाकर कलम थामी जो काम के साथ शौक के रुप में चल रही है। आप ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं।

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