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वह नई नवेली दुल्हन थी
सोलह श्रृंगार सजाया था
लांघ पिता की दहलीज
आगे कदम बढ़ाया था
थी अरमानो की डोली
सपने खूब संजोये थे
पिता ने पीठ दिखाई तो
भाई भी बहुत रोये थे
कुछ वर्षों में ही तूमने
इतना प्यार लुटाया था
बनकर दिल की धड़कन
कितना हमें रूलाया था
लेकिन फिर मान लिया
..बेटी होती है पराई
पोंछकर अपने आँसू
..मिलकर दी बिदाई
आँगन सूना कर गई
छोड़ भाई की कलाई को
माँ का दामन छोड़ दिया
छोड़ अपनी परछाई को
लेकिन तेरी बिदाई पर
खूब बजाई शहनाई थी
वह दिन मुझको को याद है
जब बेटी बन तू आई थी
सबने मिलकर ..
ताने मुझको सुनाये थे
किन्तु हम लक्ष्मी मान
आँगन में तुझको लाये थे
आज बहतेंआँसू सबके
….यह कहानी कहते है
बेटी, बिन आँगन सूना है
बिन बेटी के कैसे रहते है
इसलिये कहती हूँ मैं
बेटी से, इन्साफ करो
मत मारो गर्भ मे बेटी
ऐसा तुम ना पाप करो
#कविता धनराज वाणी
परिचय-
1.श्रीमती कविता वाणी
प्राचार्य कन्या शिक्षा परिसर
जोबट विकास खण्ड
जोबट जिला-अलीराजपुर
(मध्यप्रदेश)
(मूल निवास जोबट)
जन्म स्थान- जोबट
पति का नाम -धनराज वाणी
शिक्षक व कवि (वीर रस)
2.शिक्षा-एम.ए.बी.एड.
(समाजशास्त्र/अंग्रेजी)
3.रुचि-साहित्य व रचनाकार
गीत व कविताओं की रचना
महिला सशक्तिकरण पर
विशेष….
4.उपलब्धियां-आकाशवाणी
इंदौर से अनेको बार काव्य
पाठ किया व साहित्यिक
मंचो का संचालन भी
किया
5.बचपन से साहित्य व
लेखन में रुचि
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Wed Dec 5 , 2018
एक अरसे से मैं बुझा ही नहीं मैं कश्मीर हूँ,जलना ही मेरी नीयत है क्या रावी तो कभी चेनाब से धुआँ उठता है चिनार से पूछो ये अच्छी तबियत है क्या सेब के बगीचे वो केसर की क्यारियाँ खुशबू बिखेरती फ़ज़ा हो गई रुखसत है क्या डल झील के शिकारों […]