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मेरी अर्धांगिनी के जन्मदिवस पर :-
विकल हुआ जब हृदय मेरा
तुम्हें पुकारा अंतर्मन से
जल तेरे नयनों से माँगा
नभ के श्यामल बादलों ने
तेरा सौंदर्य चुराया
झील के सब शतदलों ने
ध्वनित हो रहा नाम तेरा
विस्तृत वसुधा के कण-कण से
विकल हुआ जब हृदय मेरा
तुम्हें पुकारा अंतर्मन से
सोम-सा तू प्रकाश पुंज है
निशा के अथाह अंधकार में
दृष्टिगोचर तू ही मेरे
आचरण में और विचार में
आज पुनः तेरी विरह में
गिर पड़े अश्रु नयन से
विकल हुआ जब हृदय मेरा
तुम्हें पुकारा अंतर्मन से
क्षितिज पर होता आभासित
धरा-नीरद का आलिंगन
सागर के तट की मैं शिला
तू वेग से बहता प्रभंजन
शाश्वत ये प्रेम अपना
है परे जीवन-मरण से
विकल हुआ जब हृदय मेरा
तुम्हें पुकारा अंतर्मन से
भरत मल्होत्रा
परिचय :-
नाम- भरत मल्होत्रा
मुंबई(महाराष्ट्र)
शैक्षणिक योग्यता – स्नातक
वर्तमान व्यवसाय – व्यवसायी
साहित्यिक उपलब्धियां – देश व विदेश(कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्मान – ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा “दीपशिखा सम्मान”, “शब्द कलश सम्मान”, “काव्य साहित्य सरताज”, “संपादक शिरोमणि”
झांसी से प्रकाशित “जय विजय” पत्रिका द्वारा ” उत्कृष्ट साहितय सेवा रचनाकार” सम्मान एव
दिल्ली के भाषा सहोदरी द्वारा सम्मानित, दिल्ली के कवि हम-तुम टीम द्वारा ” शब्द अनुराग सम्मान” व ” शब्द गंगा सम्मान” द्वारा सम्मानित
प्रकाशित पुस्तकें- सहोदरी सोपान
दीपशिखा
शब्दकलश
शब्द अनुराग
शब्द गंगा
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Mon Nov 12 , 2018
कितना बड़ा दिल है उस झोपड़ी का सब सह जाती है जैसी ऊपर वाले की मर्जी कहकर आज तक हर किसी ने ऊपर वाले का डर दिखा – दिखाकर ही तो बहकाया है, बेवकूफ बनाया है झोपड़ी को और झोपड़ी भी सब सह जाती है अपने शोषण के विरोध में […]